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________________ अध्यात्म-कमल-मार्तण्ड ८६ भाव हैं, वे अपने द्वारा तो अनुभवसे प्रतीत हैं और दूसरोंके द्वारा अनुमानगम्य हैं-अनुमानसे जानने योग्य हैं और जो अनैहिक-इसपर्याय जन्य नहीं हैं-पूर्वपर्यायजन्य हैं वे सर्वज्ञके प्रत्यक्षज्ञानसे जाने जाते हैं। ये सभी वैभाविक भाव भावाश्रव और भावबन्ध दोनोंरूप हैं। भावार्थ-इस पद्यमें जीवोंके वैभाविक भावोंका निर्देश किया गया है और बताया गया है कि परपदार्थमें जो स्वात्मबुद्धिपूर्वक कर्मज भाव पैदा होते हैं वे वैभाविक भाव हैं । और ये सब आत्मामें सर्वाङ्गीण होते हैं। वैसे तो वे असंख्यात हैं, पर ऐहिकभाव और अनैहिकभावके भेदसे दो तरहके हैं। और भावाश्रव तथा भावबन्धरूप हैं। वैभाविकभावोंके भेद और उनका स्वरूपएतेषां स्युश्चतस्रः श्रतमुनिकथिता जातयोऽतत्त्वश्रद्धा मिथ्यात्वं लक्षितं तद्धयविरतिरपि सा यो ह्यचारित्रभावः। कालुष्यं स्यात्कपायः समलपरिणतौ द्वौ च चारित्रमोह (हौ) योगः स्यादात्मदेशप्रचयचलनता वाङ्मनःकायमार्गः ॥२॥ ___ अर्थ-आस्रवत्रिभंगीकार आचार्य श्रुतमुनिने इन भावोंकी चार जातियाँ-भेद कहे हैं।-(१) मिथ्यात्व (२) अविरति (३) कषाय और (४) योग। इनमें अतत्त्वश्रद्धान-विपरीतश्रद्धानका नाम मिथ्यात्व है।। अचारित्रभाव-चारित्रका धारण नहीं * 'मयं तावन्' मुद्रितप्रतौ पाठः । + 'मिच्छत्तं अविरमणं कसाय जोगा य अासवा होति।'-श्रास्रवत्रिभं० २ मिच्छोदयेण मिच्छत्तमसद्दहणं तु तच्चअत्थाणं।'-अास्रवत्रिभं० ३ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003836
Book TitleAdhyatma Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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