________________
अध्यात्म-कमल-मार्तण्ड एक ही प्रदेशी हैं-बहु प्रदेशी नहीं है। यद्यपि सूक्ष्म पुद्गल परमाणु भी स्कन्धसे पृथकत्व अवस्था में प्रदेशप्रचयसे रहित हैबहुप्रदेशी नहीं है-एक ही प्रदेशी है और इसलिये वह भी कायवान नहीं हो सकता तथापि उसमें ( परमाणुमें) स्कन्धरूप परिणत होनेकी शक्ति विद्यमान है। अतः प्रदेशप्रचयसे रहितएक प्रदेशी भी पुद्गल परमाणुको उपचारसे कायवान् कहा है। पर कालद्रव्य सदैव प्रदेशप्रचय-बहुप्रदेशोंसे रहित है-एक प्रदेशमात्र है-इसलिये वह कायवान् नहीं कहा गया।
भावार्थ-जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और काश ये पाँच द्रव्य बहुप्रदेशी और अस्तित्ववान् हैं इसलिये ये पाँच द्रव्य तो 'अस्तिकाय' कहे जाते हैं । किन्तु कालद्रव्य अस्तित्ववान् होते हुये भी एकप्रदेशीमात्र होने के कारण (बहुप्रदेशी न होनेसे) कायवान् नहीं है और इसलिये उसे अस्तिकाय नहीं कहा गया है। यद्यपि परमाणु भी एक-प्रदेशी है-बहुप्रदेशी नही है तथापि परमाणु अपनी परमाणु अवस्थाके पहिले स्कन्धरूप होने तथा आगे भी स्कन्धरूप परिणत हो सकनेके कारण उपचारसे बहुप्रदेशी माना गया है* । परन्तु कालाणुओंमें कभी भी अविष्वभाव (तादाम्य) सम्बन्ध न हो सकनेसे उनमें एकात्मकपरिणति न तो पहले हुई और न आगे होनेकी सम्भावना है; क्योंकि वे ( कालाणु) एक एक करके सदैव जुदे जुदे ही लोकाकाशके एक एक प्रदेशपर रत्नोंकी राशिकी तरह अवस्थित हैं। अतः काल-द्रव्य भूत* 'एयपदेसो वि अणू णाणाखंधप्पदेसदो होदि।। बहुदेसो उवयारा तेण य कालो भणंति सव्वण्हू ॥'-द्रव्यसं० २६
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org