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________________ अध्यात्म-कमल-मार्तण्ड कनिष्ठत्वका व्यवहार होता है। ये सब व्यवहारकालके मानझापक लक्षण हैं-इन परिणामादिके द्वारा ही समय, घड़ी आदि व्यवहारकालकी प्रतीति होती है। भावार्थ-परिणमन, क्रिया, परत्व और अपरत्व (कालकृत) ये सब व्यवहारकालके उपकार हैं। इनसे व्यवहारकाल जाना जाता है। सागर, पल्य, वर्ष, महिना, अयन, ऋतु, दिन, 'घड़ी, घंटा, मुहूर्त आदि सब व्यवहारकाल हैं। यह व्यवहारकाल सूक्ष्म निश्चयकालपूर्वक होता है-निश्चयकालकी सिद्धि इसी ब्यवहारकालसे होती है। भूत, वर्तमान और भविष्यद् ये तीन भेद भी ब्यवहार कालके ही हैं। क्योंकि द्रव्योंकी भूतादि क्रिया या पर्यायोंकी अपेक्षासे ये भेद होते हैं। और इसीलिये अन्यसे परिच्छिन्न तथा अन्यके परिच्छेदमें कारणभूत क्रियाविशोषको 'काल' ब्यवहृत किया गया है। व्यवहारकालको निश्चयकालकी पर्याय कहनेका एकदेशीयमत एनं व्यवहतिकालं निश्चयकालस्य गान्ति पर्यायम् । वृद्धाः कथंचिदिति तद्विचारणीयं यथोक्तनयवादैः॥४॥ अर्थ-कोई पुरातनाचार्य इस ब्यवहारकालको निश्चयकालकी पर्याय कहते हैं। उनका यह कथन नय-कुशल विद्वानोंको "कथंचित् दृष्टिसे-किसी एक अपेक्षासे समझना चाहिये। ____ * 'परिणामादिलक्षणो व्यवहारकालः। अन्येन परिच्छिन्नोऽन्यस्य परिच्छेदहेतुः क्रियाविशेषः काल इति व्यवह्रियते । स त्रिधा व्यवतिष्ठते भूतो, वर्तमानो, भविष्यन्निति । तत्र परमार्थकाले कालव्यपदेशो मुख्यः । भूतादिव्यपदेशो गौणः । व्यवहारकाले भूतादिव्यपदेशो मुख्यः । कालव्यवदेशो गौणः । क्रियावद्रव्यापेक्षत्वात् कालकृतत्वाच्च ।'-सर्वार्थसिद्धि ५-२२ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003836
Book TitleAdhyatma Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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