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वीरसेवामन्दिर-ग्रन्थमाला अप्रेरक-उदासीनरूपसे उनके चलने में सहायता पहुंचाता है। बुड्डको लाठी, रास्तागीरोंका मार्ग, रेलगाड़ीको रेलकी पटरी आदि धर्मद्रव्यके और भी दृष्टान्त जानना चाहिए।
अधर्मद्रव्यका स्वरूपतिष्ठद्भाववतोश्च पुद्गलचितोश्चौदास्यभावेन यधेतुत्वं पथिकस्य मार्गमटतश्च्छाया यथाऽवस्थितेः । धर्मोऽधर्मसमाह्वयस्य गतमोहात्मप्रदिष्टः सदा शुद्धोऽयं शश्वदनयोः स्थित्यात्मशक्तावपि ॥३१॥
अर्थ-ठहरते हुये जीव और पुद्गलोंके ठहरनेमें जो उदासीनभावसे हेतुता है-सहायककारणता है वह अधर्मद्रव्यका धर्म है-उपकार है, ऐसा गतमोह-जिनेन्द्र भगवान्ने कहा है। जैसे मार्ग चलते हुये पथिक-मुसाफिरके ठहरनेमें वृक्षकी छाया उदासीन भावसे-अप्रेरकरूपसे कारण होती है। यद्यपि गतिशक्तिकी तरह जीव और पुद्गलोंमें स्थितिशक्ति-ठहरनेकी सामर्थ्य भी एक साथ निरन्तर विद्यमान रहती है तथापि उनके ठहरने में सहकारी कारण अधर्मद्रव्य ही है।
भावार्थ-जीव और पुद्गलोंके ठहरने में अधर्मद्रव्य एक उदासीन-अप्रेरक कारण है। जब वे ठहरने लगते हैं तो यह द्रव्य उनके ठहरने में सहायक होता है। पथिकोंको ठहरनेमें
* 'ठाणजुदाण अधम्मो पुग्गलजीवाण ठाणसहयारी।
छाया जह पहियाणं गच्छंता णेव सो धरई ॥' -द्रव्यसं० १८ 'जह हवदि धम्मदव्वं तह तं जाणेह दव्वमधम्मक्खं । ठिदिकिरियाजुत्ताणं कारणभूदं तु पुढवीव ।।' --पंचास्ति०८६
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