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वीरसेवामन्दिर-ग्रन्थमाला पुद्गलद्रव्यकी 'अन्वयसंज्ञक' और 'प्रदेशप्रचयज' पर्यायोंका कथनपर्यायः परमाणुमात्र इति संशुद्धोऽन्वयाख्यः स हि रूक्षस्निग्धगुणैः प्रदेशचयजो शुद्धश्च मूर्त्यात्मनः । द्रव्यस्येति विभक्त नीतिकथनात्स्याभेदतः स विधा सूक्ष्मान्तर्भिदनेकधा भवति सोऽपीहेति भावात्मकः ॥२३॥
अर्थ-परमाणुमात्र (सभी परमाणु) अन्वयसंज्ञक शुद्धपर्याय हैं और रुक्ष तथा स्निग्ध गुणों के निमित्तसे होनेवाली स्कन्धरूप मूर्तद्रव्यकी जो व्यवहारनयसे शुद्ध पर्याय है वह प्रदेश-प्रचयज पर्याय है। यह प्रदेश-प्रचयज पर्याय तीन प्रकारकी है-(१) संख्यातप्रदेश-प्रचयज पर्याय, (२) असंख्यातप्रदेश-प्रचयज पर्याय और (३) अनन्तप्रदेश-प्रचयज पर्याय । इनके भी सूक्ष्म अन्तरङ्ग भेदसे अनेक भेद हैं और ये सब 'भाव' रूप पर्यायें मानी गई हैं। ___ भावार्थ-पुद्गल-द्रव्यकी दो तरहकी पर्यायें कही गई हैं-- (१) अन्वयपर्याय और (२) प्रदेशप्रचयज पर्याय । प्रदेशप्रचयज पर्यायके भी दो भेद हैं-(१) शुद्ध प्रदेश-प्रचयज पर्याय और (२) अशुद्ध प्रदेश-प्रचयज पर्याय । सम्पूर्ण परमाणु तो अन्वयपर्याय हैं और रूक्ष तथा स्निग्ध गुणों के निमित्तसे होनेवाली स्कन्धरूप पुद्गलकी प्रदेश-प्रचयजन्य प्रदेशप्रचयज पर्याय है
और वह व्यवहानयकी दृष्टिसे शुद्ध है। वस्तुतः वह अशुद्ध ही है। इस शुद्ध प्रदेशप्रचज पर्यायके भी तीन भेद हैं--(१) संख्यात प्रदेशी,(२) असंख्यात प्रदेशी और (३) अनन्तप्रदेशी । तथा आगे. के चौतीसवें पद्यमें शब्द, बन्ध आदि जो पुद्गलकी पर्याय कही जावेंगी वे अशुद्ध प्रदेशप्रचयज पर्यायें या अशुद्ध पर्याय हैं।
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