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वीर सेवामन्दिर - ग्रन्थमाला
अशुद्ध पुद्गलद्रव्य के प्रदेशों का कथनरुक्षस्निग्धगुणैः प्रदेशगणसं पिण्डो गुणानां व्रजस्तत्राप्यर्थ समुच्चयोऽखिलमिदं द्रव्यं शुद्धं च तत् । पर्यायार्थिक नीतितो हि गणितात्संख्यातदेशी विधिः संख्यातीतसमं शमाद्भवति वानन्तप्रदेशी त्रिधा ||२१||
अर्थ - रूक्ष और स्निग्ध गुणोंसे होनेवाला प्रदेशसमूहरूप पिण्ड और गुणोंका गण तथा उसमें भी जो अर्थ (पर्याय) समुदाय है वह सब ही पर्यायार्थिकनयसे अशुद्ध पुद्गल द्रव्य हैं । इनमें कोई पुद्गल गणना से संख्यात प्रदेशी, कोई असंख्यात प्रदेशी और कोई अनन्त प्रदेशी हैं । इस तरह प्रदेश - संख्या की अपेक्षा पुद्गल - द्रव्य तीन प्रकारका है अथवा पुद्गल द्रव्यमें तीन प्रकार के प्रदेश कहे गये हैं ।
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भावार्थ- पुद्गलद्रव्यका एक परमाणु शुद्धपुद् गलद्रव्य है और परमाणु के सिवाय द्र्शुक आदि स्कन्ध शुद्ध पुद्गलद्रव्य हैं । परमाणु एक प्रदेशी है और द्वयक आदि स्कन्ध संख्यात, असंख्यात और अनन्त प्रदेशी हैं। कोई स्कन्ध तो संख्यात प्रदेशी है, कोई असंख्यात प्रदेशी और कोई अनन्त प्रदेशी । इस प्रकार पुद् गलद्रव्य तीन प्रकार के प्रदेशोंवाला है ।
* 'मूत्ते तिविपदेमा' - द्रव्यसं० २५
'संख्येयाऽसंख्येयाश्च पुद्गलानाम् |' तत्त्वार्थ० ५-१० 'चशब्देनानन्ताश्चेत्यनुकृष्यते । कस्यचित्पुद्गलद्रव्यस्य द्वषणुकादेः संख्येयाः प्रदेशाः कस्यचिदसंख्येया, अनन्ताश्च । अनन्तानन्तोपसंख्यानमितिचेन्न । अनन्तसामान्यात् । ग्रनन्तप्रमाणं त्रिविधमुक्तं परीतानन्तं युक्तानन्तमनन्तानन्तं चेति । तत्सर्वमनन्तसामान्येन गृह्यते ॥'
--सर्वार्थसिद्धिः ५-१०
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