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________________ वीरसेवामन्दिर-ग्रन्थमाला अर्थात् रूप, रस, गन्ध और स्पर्श ये प्रतिनियत इन्द्रियोंके विषय होते हैं और सर्वज्ञदेवके कहे आगमसे प्रत्यक्ष जाने जाते हैं। साथ ही लिङ्गजन्यज्ञान-अनुमानसे भी ज्ञातव्य हैं। मैं 'राजमल्ल' उस पुद्गलद्रव्यका, जो गुणों और पर्यायोंके समूहरूप है, संक्षेपसे कथन करता हूँ। ___ भावार्थ-जीवद्रव्यका वर्णन करके अब पुद्गलद्रव्यका कथन किया जाता है। पुद्गल वह है जिसमें रूपादि चार गुण पाये जावें। जैसे आम, लकड़ी आदि। ये चार गुण सभी पुद्गलोंमें पाये जाते हैं । जहाँ रस होता है वहाँ अन्य रूपादि तीन गुण भी विद्यमान रहते हैं। इसी तरह जहाँ रूप या गन्ध अथवा स्पर्श है वहाँ रसादि शेष तीन गुण भी रहते हैं। क्योंकि ये एक दूसरेके अविनाभावी हैं—एक दूसरेके साथ अवश्य ही रहते हैं। कोई भी पुद्गल ऐसा नहीं है, जो रूपादि चार गुणवाला न हो। हाँ, यह हो सकता है कि कोई पुद्गल स्पर्शगुणप्रधान हो, जैसे हवा; कोई गन्धगुणप्रधान हो, जैसे कपूर कस्तूरी आदि तथा कोई रसप्रधान हो जैसे आम्रादिके फल और कोई रूपगुणप्रधान हो, जैसे अन्धकार आदि । तथापि वहाँ शेष गुण भी गौणरूपसे अवश्य होते हैं। उनकी विवक्षा न होने अथवा स्थूलबुद्धिके विषय न होनेसे अप्रतीत-जैसे रहते हैं। उपर्युक्त पुद्गलोंमें कोई पुद्गल प्रत्यक्ष-गम्य हैं; जैसे मेज, कुर्सी, मकान आदि । और कोई पुद्गल अनुमानसे गम्य हैं; जैसे परमाणु आदि । तथा कोई पुद्गल आगमसे जानने योग्य हैं; जैसे पुण्प, पाप आदि कर्मपुद्गल । इस तरह यह पुद्गलद्रव्य अणु और स्कन्धादि अनेक भेदरूप है। * 'अणवः स्कन्धाश्च'-तत्त्वार्थसूत्र' ५-२५ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003836
Book TitleAdhyatma Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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