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________________ अध्यात्म-कमल-मार्तण्ड वैभाविक भावोंका कथन किया गया है । ये वैभाविक भाव संक्षेप में तीन प्रकारके हैं -१ औदयिक २ औपशमिक और ३ क्षायोपशमिक । औदयिकभाव वे हैं जो कर्मके उदयसे होते हैं और वे गति आदि इक्कीस प्रकारके कहे गये हैं । पशमिकभाव वे हैं जो कर्मके उपशमसे होते हैं और वे उपशमसम्यक्त्व तथा उपशमचारित्र के भेदसे दो तरह के हैं । । जो भाव कर्मोके क्षय और उपशम दोनोंसे होते हैं वे क्षायोपशमिक भाव कहे गये हैं, इनके भी उत्तरभेद १८ हैं । । जीवके समल और विमल दो भेदोंका वर्णन - आत्माऽसंख्यातदेशप्रचय परिणतिर्जीवतत्त्वस्य तत्त्वापर्यायः स्यादवस्थान्तर परिणतिरित्यात्मवृत्त्यन्तरो हि । द्रव्यात्मा स द्विधोक्को विमल - समलभेदाद्धि सर्वज्ञगीतविद्द्रव्यास्तित्वदर्शी नयविभजनो रोचनीयः प्रदक्षैः ॥६॥ अर्थ - अपने असंख्यात प्रदेशों में ही परिणमन करना जीवकी वास्तविक शुद्धपर्याय है और अवस्थासे अवस्थान्तर - पर्याय से पर्यायान्तर - रूप परिणमन करना अशुद्ध पर्याय है । यह जीवतस्त्र चिद्रव्यके अस्तित्वका दर्शी है - देखनेवाला है, * 'गतिकषायलिङ्गमिथ्यादर्श नाऽज्ञानाऽसंयताऽसिद्धलेश्याश्चतुस्त्र्येकैकै'कपडभेदाः' —-तत्त्वार्थसूत्र १-६ --तत्त्वार्थसूत्र १-३ + 'सम्यक्त्व चारित्रे' + 'ज्ञानाज्ञानदर्शनलब्ध्यश्चतुस्त्रित्रिपञ्चभेदाः सम्यक्त्वचारित्रसंयमासंयमाश्र' - तत्त्वार्थसूत्र १-५ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003836
Book TitleAdhyatma Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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