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अध्यात्म-कमल-मार्तण्ड चेतना (ज्ञान और दर्शन) लक्षण प्राण पाये जावें वह जीव है। यह चेतना संसारी और मुक्त दोनों ही प्रकार के जीवोंमें होती है । और त्रिकालावाधित-अनवच्छिन्नरूपसे हमेशा विद्यमान रहती है । वे प्राण दो तरह के है १ द्रव्यप्राण और २ भावप्राण । पुद्गगलद्रव्यरूप इन्द्रियादि दश प्राणोंको तो द्रव्यप्राण कहते हैं
और जीवकी चेतना-ज्ञान और दर्शनको भावप्राण कहते हैं। अतएव शुद्र निश्चयनयकी अपेक्षासे 'चेतना' रूप ही प्राण कहे गये हैं। द्रव्यप्राण दश हैं-इन्द्रिय ५ ( स्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र), बल ३ (मन, वचन और काय) श्वासोच्छ्रास १ तथा आयु १ इस तरह पुद्गलकी रचनास्वरूप द्रव्यप्राण कुल १० हैं। इन दोनों ही प्रकार के द्रव्य और भावप्राणोंको धारण करनेसे
१ तिक्काले चदुपाणा इंदियबलमाउ आणपाणो य।
ववहारा सो जीवो णिच्चयणयदो दु चेदणा जस्स ||--द्रव्यसं० ३ 'इत्थंभूतश्चतुर्भिद्रव्यभावप्राणैयथासंभवं जीवति, जीविष्यति, जीवितपूर्वो वा यो व्यवहारनयात् ज जीवः । द्रव्येन्द्रियादिद्रव्यप्राणा अनुपचरितासद्भूतव्यवहारेण, भावेन्द्रियादिः क्षायोपशमिकप्राणाः पुनरशुद्धनिश्चयनयेन । सत्ताचैतन्यबोधादिः शुद्धभाक्याणाः शुद्धनिश्चयनयेनेति'
--बृहद्र्व्य संग्रहवृत्ति, गाथा ३ 'पाणेहिं चदुहिं जीवदि जीवस्सदि जो हु जीवदो पुव्वं । ___ सो जीवो पाणा पुण बलमिदियमाउ उस्सासो' || -पंचास्ति० ३०
टी०—'इन्द्रियबलायुरुच्छ वासलक्षणा हि प्राणाः । तेषु चित्सामान्यान्वयिनो भावप्राणाः, पुद्गलसामान्यान्वयिनो द्रव्यप्राणाः, तेषामुभयेषामपि त्रिष्वपि कालेष्वनवच्छिन्नसंतानत्वेन धारणात्संसारिणो जीवत्वं । मुक्तस्य तु केवलानामेव भावप्राणानां धारणात्तदवसेयमिति' ।
-श्रीअमृतचन्द्राचार्यः
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