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वीरसेवामन्दिर-ग्रन्थमाला
करते हैं तब कुण्डलको मिटाकर हार बना लेनेपर हार-पर्यायके समयमें कुण्डलरूप पर्याय नहीं रहती है। अतः पर्यायोंकी अपेक्षा सुवर्णद्रव्य अनित्य रूप भी है।
इस प्रकार श्रीअध्यात्म-कमल-मार्तण्ड नामके शास्त्रमें द्रव्यांका सामान्यलक्षण प्रतिपादन करनेवाला द्वितीय परिच्छेद पूर्ण हुआ।
तृतीय परिच्छेद (१) जीव-द्रव्य-निरूपण जीवद्रव्यके कथनकी प्रतिज्ञाजीवो द्रव्यं प्रमिति-विषयं तद्गुणाश्चेत्यनन्ताः पर्यायास्ते गुणि-गुणभवास्ते च शुद्धा ह्यशुद्धाः । प्रत्येकं स्युस्तदखिलनयाधीनमेव स्वरूपम् तेषां वक्ष्ये परमगुरुतोऽहं च किंचिज्ञ एव ॥१॥ अर्थ-'जीव' द्रव्य है, प्रमाणका विषय है-प्रमाणसे जानने योग्य है, अनन्तगुणवाला है-प्रमाणसे सिद्ध उसके अनन्त गुण हैं, तथा गुणी और गुण इन दोनोंसे होनेवाली शुद्ध और अशुद्ध ऐसी दो प्रकारकी पर्यायोंसे युक्त है। इनमें प्रत्येकका स्वरूप सभी नयोंसे जाना जाता है-द्रव्यार्थिकनयसे द्रव्य और गुणोंका तथा पर्यायार्थिकनयसे पर्यायोंका स्वरूप (लक्षण) प्रसिद्ध होता है । अथवा यों कहिये कि इन द्रव्य, गुण और पर्यायोंकी
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