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अध्यात्म-कमल
- मार्तण्ड
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अपने समप्रदेशों और पर्यायोंसे वह अभिन्न है - भिन्न नहीं है, इसलिये तो एकरूप है । परन्तु जब हम उसी द्रव्यका गुरण-गुणीके भेदसे विचार करते हैं तब हमें उसमें गुणी और गुणका स्पष्ट भेद मालूम होता है अतः अनेकरूप है, और द्रव्यकी यह एकता तथा नेता कोई विरुद्ध नहीं है । भिन्न भिन्न अपेक्षाओं से रहनेवाले धर्मो में विरोध जैसी कोई चीज़ रहती ही नहीं । द्रव्यमें नित्यता और अनित्यताका प्रतिपादन - नित्यं त्रिकाल - गोचर-धर्मत्वात्प्रत्यभिज्ञतस्तदपि । क्षणिक काल-विभेदात्पर्यायनयादभाणि सर्वज्ञैः ||२५|| इति श्रीमदध्यात्मकमलमार्तण्डाभिधाने शास्त्रे द्रव्यसामान्यलक्षणसमुद्योतको द्वितीयः परिच्छेदः ।
अर्थ — द्रव्यार्थिकनयसे अथवा तीनों कालोंमें रहनेवाले द्रव्य - के अन्यको विषय करनेवाले प्रत्यभिज्ञानप्रमाणसे द्रव्य नित्य है और कालभेदरूप पर्यार्थिकनयसे क्षणिक - अनित्य है । इस प्रकार सर्वज्ञदेवने द्रव्यको नित्य और अनित्य दोनोंरूप कहा है ।
भावार्थ - केवल द्रव्यको विषय करनेवाले द्रव्यार्थिकनय से और भूत-भविष्यत् वर्तमानरूप त्रिकालको विषय करने वाले प्रत्यभिज्ञानसे द्रव्य नित्य है । और केवल पर्यायकों विषय करनेवाले कालभेदरूप पर्यायार्थिकनयसे द्रव्य क्षणिक (नित्य) है । जैसे एक ही सुवर्णद्रव्य के कटक, कुण्डल, केयूर आदि अनेक आभूषण बना लेनेपर भी द्रव्यत्वरूप से उन सब आभूष
में सुवर्णत्व विद्यमान रहता है-उसके पीतत्वादि गुणोंका किंचित् भी विनाश नहीं होता, अतः द्रव्यत्वसामान्य की अपेक्षासे सुवर्ण नित्य है; किन्तु इसीका जब हम पर्याय - दृष्टिसे विचार
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