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________________ अध्यात्म-कमल-मार्तण्ड ये तीनों परस्पर में अविनाभूत हैं। जैसे घड़ेका उत्पाद, मिट्टीके पिंडका विनाश और दोनोंमें मिट्टीका मौजूद रहना ये तीनों एक साथ उपलब्ध होते हैं। उसी तरह प्रत्येक पदार्थमें भी उत्पादादि तीनोंका अविनाभाव समझना चाहिये । इसी तरह गुणी, गुण तथा पर्यायोंका भी अभिनाभाव है। गुणीमें गुण रहते हैं वे उससे पृथक् नहीं हैं। और गुणी गुणोंके साथ ही उपलब्ध होता है, गुणोंके बिना नहीं । जैसे जीव और उसके ज्ञानादिगुणोंका परस्परमें अविनाभाव है। ज्ञानादिगुण जीवमें ही पाये जाते हैं और जीव भी ज्ञानादिगुणोंके साथ ही उपलब्ध होता है। अतः उत्पाद, व्यय और ध्रौव्यकी तरह गुण, गुणी और पर्यायों में भी अविनाभाव प्रत्यक्षादि प्रमाणोंसे सिद्ध है। द्रव्यमें सत्व और असत्वका विधानस्वीयाच्चतुष्टयात्किल सदिति द्रव्यं हयबाधितं गदितम् । परकीयादिह तस्मादसदिति कस्मै न रोचते तदिदम् ॥२३॥ अर्थ-स्वद्रव्य-क्षेत्र-काल और भावरूप अपने चतुष्टयसे द्रव्य सत् है-अस्तित्वरूप कहा गया है, इसमें कोई बाधा नहीं आती। और परद्रव्य-क्षेत्र-काल-भावरूप परकीय चतुष्टयसे द्रव्य असत्नास्तित्वरूप है । वस्तुका यह नास्तित्व स्वरूप किसके लिये रुचिकर नहीं होगा ? अर्थात् विचार करनेपर सभीको रुचिकर होगा। भावार्थ-द्रव्य अपने चतुष्टयसे सत्स्वरूप है और परकीय चतुष्टयसे असत्रूप है। जैसे घट अपने चतुष्टयसे घटरूप है * ण भवो भंगविहीणो भंगो वा णत्थि संभवविहीणो । उप्पादो वि य भंगो ण विणा धोव्वेण अत्थेण ॥ -प्रवचनसारे, श्रीकुन्दकुन्दाचार्यः Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003836
Book TitleAdhyatma Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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