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________________ वीरसेवामन्दिर-ग्रन्थमाला होते हैं। इस विचित्र नानारूप (उत्पाद-व्यय-धौव्यात्मक) द्रव्यको एकान्ती नहीं मानते। भावार्थ-उपर्युक्त उत्पादादि तीनों द्रव्यसे कथंचित् भिन्न हैं और वे प्रतिक्षण एक साथ होते रहते हैं। एकान्तवादी अनुभवसिद्ध इस नानारूप द्रव्यको स्वीकार नहीं करते। वे उत्पाद, व्यय और ध्रौव्यको अलग अलग क्षणमें मानते हैं। उनका कहना है कि जिस समय उत्पाद होगा उस समय व्यय नहीं होगा और जिस समय व्यय होगा उस समय उत्पाद या ध्रौव्य नहीं हो सकता, इस तरह एक काल में तीनों नहीं बन सकते; किन्तु उनका यह कहना ठीक नहीं है। जिस प्रकार दीपक जलाते ही प्रकाशकी उत्पत्ति और तमोनिवृत्ति तथा पुद्गलरूपसे स्थिति ये तीनों एक ही समयमें होते हैं। उसी प्रकार समस्त पदार्थों में उत्पाद व्यय और ध्रौव्य एक ही साथ होते हैं। उत्पादादि और गुण-गुण्यादिमें अविनाभावका प्रतिपादनअविनाभावो विगम-प्रादुर्भाव-ध्रुवत्रयाणां च। गुणि-गण-पर्यायाणामेव तथा युक्तितः सिद्धम् ॥२२॥ अर्थ-उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य इन तीनोंका परम्पर अविनाभाव है तथा गुण, गुणी और पर्यायोंका भी अविनाभाव युक्तिसे सिद्ध है। भावार्थ-उत्पाद, व्ययके बिना नहीं होता, व्यय, उत्पादके बिना नहीं होता तथा उत्पाद और व्यय ये दोनों ध्रौव्यके बिना नहीं होते, और ध्रौव्य उत्पाद-व्ययके बिना नहीं होता, इसलिये + वासतो जन्म सतो न नाशो दीपस्तमः पुद्गलभावतोऽस्ति' ----स्वयंभूस्तो० का २४ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003836
Book TitleAdhyatma Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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