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अध्यात्म-कमल-मार्तण्ड अपने स्वरूपको नहीं छोड़ता है यही उसकी ध्रौव्यता अथवा नित्यता है। जिस तरह एक ही सुवर्ण कटक, कुण्डल, केयूर, हार, आदि विभिन्न आभूषण-पर्यायोंमें उत्पाद-व्यय करता हुआ भी अपने सुवर्णत्वसामान्यकी अपेक्षा ज्योंका त्यों कायम रहता है, और यह स्वर्णत्व ही स्वर्णका नित्य अथवा ध्रौव्यपना है। ___ द्रव्य, गुण और पर्यायका सत्स्वरूपसद्रव्यं सच्च गुणः सत्पर्यायः स्वलक्षणाद्भिन्नाः । तेषामेकास्तित्वं सर्व द्रव्यं प्रमाणतः सिद्धम् ॥ २० ॥ ___ अर्थ-सत् द्रव्य है, सत् गुण है और सत् पर्याय है-अर्थात् द्रव्य, गुण और पर्याय ये तीनों ही सत्स्वरूप हैं और यद्यपि अपने अपने लक्षणोंसे वे भिन्न हैं तथापि उन तीनोंका सत्की दृष्टिसे एक अस्तित्व है और इस लिये सत्सामान्यकी अपेक्षासे सभी प्रमाणसे द्रव्य सिद्ध हैं। किन्तु सत् विशेषकी अपेक्षासे तो तीनों पृथक पृथक् ही हैं।
भावार्थ--द्रव्य, गुण और पर्याय ये तीनों ही सत्स्वरूप हैं; किन्तु लक्षण-भिन्नतासे तीनों का अस्तित्व जुदा जुदा है। ये एक ही द्रव्यमें रहते हैं-फिर भी अपनी अवान्तर-सत्ताको नहीं छोड़ते। __ ध्रौव्यादिका द्रव्यसे कथंचित भिन्नत्वधौव्योत्पादविनाशा भिन्ना द्रव्यात्कथंचिदिति नयतः । युगपत्सन्ति विचित्रं स्याद्रव्यं तत्कुदृष्टिरिह नेच्छेत् ॥२१॥ ___ अर्थ-ध्रौव्य, उत्पाद और विनाश ये द्रव्यमें नयदृष्टि (पर्यायार्थिकनय) से कथंचित् भिन्न हैं और तीनों द्रव्योंमें युगपत् * 'सद्दव्वं सच्च गुणो सच्चेव य पज्जनो.........।'
--प्रवचनसारे, श्रीकुन्दकुन्दाचार्यः ।
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