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वीरसेवामन्दिर-ग्रन्थमाला
द्रव्यज पर्याय कहते हैं। यह वैभाविक द्रव्यज पर्याय जीव और पुद्गलमें ही पाई जाती है। ____ भावार्थ-जो पर्याय द्रव्यान्तरके निमित्तसे हो उसे विभाव द्रव्यज पर्याय कहते हैं-जैसे पुद्गलके निमित्तसे मंसारी जीवका जो शरीराकारादिरूप परिणाम है वह जीवकी विभाव द्रव्यज पर्याय है । और उसी प्रकार जीवके निमित्तसे पुद्गलका शरीरादिरूप परिणत होना पुद्गलकी विभाव द्रव्यज पर्याय है। ये विभाव द्रव्यज पर्याय केवल पुद्गल और जीवमें ही होती हैं--अन्य धर्मादिद्रव्योंमें नहीं। क्योंकि उनमें विभावरूपसे परिणमन करानेवाली वैभाविक शक्ति या क्रियावती शक्ति नहीं है । अतः उनका स्वभावरूपसे ही परिणमन होता है और इसलिये उनमें स्वभाव पर्यायें ही कही गई हैं।
गुण-पर्यायोंका वर्णनएकैकस्य गुणस्य हि येऽनन्तांशाः प्रमाणतः सिद्धाः । तेषां हानि दिर्वा पर्याया गुणात्मकाः स्युस्ते ॥१३॥
अर्थ-एक एक गुणके प्रमाणसे सिद्ध जो अनन्त अंश हैंअविभाग-प्रतिच्छेदरूप अनन्त शक्त्यंश हैं-उनकी हानिवृद्धिरूप जो पर्यायें होती हैं वे गुणात्मक पर्याय कहलाती हैं। अर्थात उन्हें गुण-पर्याय कहा गया है।
भावार्थ-एक एक गुणके अविभागप्रतिच्छेदरूप अनन्त शक्त्यंश होते हैं उनको अगुमलघुगुणों के द्वारा होने वाली पड़गुणी हानि-वृद्धिरूप जो पर्याय निष्पन्न होती हैं वे सब गुण-पर्याय कहलाती हैं । गुणांश-कल्पनाको गुण-पर्याय कहते हैं। गुण-पर्याय दो प्रकार की है--अर्थ-गुण-पर्याय और व्यञ्जन-गुण-पर्याय ।
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