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अध्यात्म-फमल-मार्तण्ड
२६ विशेष द्रव्यज-पर्याय हैं और धर्मांश गुण-पर्याय हैं। ये दोनों ही तरहकी पर्याय क्रमशः द्रव्यों और गुणोंमें हुआ करती हैं।
द्रव्यावस्थाविशेषरूप द्रव्यज पर्यायका स्वरूपएकानेकद्रव्याणामेकानेकदेशसंपिण्डः । द्रव्यजपर्यायोऽन्यो देशावस्थान्तरे तु तस्माद्धि ॥१०॥
अर्थ-एक अनेकरूप द्रव्योंका एक अनेकरूप प्रदेशपिण्ड द्रव्यज पर्याय कहलाती है। और वह एक अनेक द्रव्यका देशांतर तथा अवस्थान्तररूप होना है। यह द्रव्यज पर्याय दो प्रकारकी है-(१) स्वाभाविक द्रव्यज पर्याय और (२) वैभाविक द्रव्यज पर्याय । इनका स्वरूप स्वयं अन्धकार आगे कहते हैं।
स्वाभाविक द्रव्यज पर्यायका स्वरूपयो द्रव्यान्तरसमिति विनैव वस्तुप्रदेशसंपिण्डः । नैसर्गिकपर्यायो द्रव्यज इति शेषमेव गदितं स्यात् ॥११॥
अर्थ--द्रव्यान्तरके संयोगके बिना ही वस्तुका जो प्रदेशपिण्ड है वह स्वाभाविक द्रव्यज पर्याय है। और जो शेष हैअन्य द्रव्यान्तरके सम्बन्धसे होनेवाला वस्तुके प्रदेशोंका पिण्ड है--उसे वैभाविक द्रव्यज पर्याय कहा गया है । जैसा कि आगेके पद्यमें स्पष्ट किया गया है।
वैभाविक द्रव्यज पर्यायका स्वरूपद्रव्यान्तरसंयोगादुत्पन्नो देशसंचयो द्वयजः । वैभाविकपर्यायो द्रव्यज इति जीव-पुद्गलयोः ॥१२।। अर्थ-दूसरे द्रव्यके संयोगसे उत्पन्न प्रदेशपिण्डको वैभाविक 'एकानेकद्रव्याण्येकानेप्रदेशसंपिण्डः ।--मुद्रितप्रतौ पाठः
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