SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 119
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्यात्म-कमल-मार्तण्ड श्री भाववती शक्ति विकारको अर्थ -गुण-पर्याय कहते हैं और प्रदेशयत्वगुणरूप क्रियावती शक्तिके विकारको व्यञ्जन-गुण- पर्याय कहते हैं । अथवा स्वभाव-गुण- पर्याय और विभाव-गुण- पर्यायकी अपेक्षा भी गुण पर्याय के दो भेद हैं । स्वभाव - गुण- पर्यायका स्वरूप धर्मद्वारेण हि ये भावा धर्मांशात्मका [हि ] द्रव्यस्य । द्रव्यान्तरनिरपेक्षास्ते पर्याया: स्वभावगुणतनवः || १४॥ अर्थ - अन्यद्रव्यकी अपेक्षासे रहित द्रव्यके जो धर्मसे धर्माशरूप परिणाम होते हैं वे स्वभाव गुण-पर्याय कहलाते हैं । भावार्थ - जो द्रव्यान्तरके बिना होता है उसे स्वभाव कहते हैं। जैसे कर्मरहित शुद्धजीवके जो ज्ञान, दर्शन, सुख और वीर्य आदि पाये जाते हैं वे जीवके स्वभाव - गुरणपर्याय हैं । और परमाणु में जो स्पर्श-रस- गन्ध और वर्ण होते हैं वे पुगलकी स्वभाव गुण पर्याय हैं। धर्मद्रव्य में जो गतिहेतुत्व, अधर्मद्रव्य में स्थितिहेतुत्व, आकाश द्रव्यमें अवगाहहेतुत्व और कालद्रव्य में वर्तनाहेतुत्व है वह उस उस द्रव्यकी स्वभाव-गुरण-पर्याय है, इन्हें इन द्रव्योंके उपकाररूपसे भी उल्लेखित किया है । सम्पूर्ण द्रव्यों में अगुरुलघुगुणका जो परिणाम होता है वह सब उस उस द्रव्यकी स्वभाव - गुण - पर्याय है । विभाव-गुण- पर्यायका स्वम्प अन्यद्रव्यनिमित्ताद्ये परिणामा भवंति तस्यैव । धर्मद्वारेण हि ते विभावगुणपर्या( ) या द्वयोरेव || १५ ।। अर्थ-उसी विवक्षित द्रव्यके अन्य द्रव्यकी अपेक्षा लेकर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003836
Book TitleAdhyatma Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy