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________________ अध्यात्म-कमल-मातंण्ड २५ सत् और अकारणवान हैं-चर्यांये ही किसी कारणसे उत्पन्न और विनष्ट होती हैं इमलिये वे तो कारणवान हैं; परन्तु द्रव्यका न उत्पाद होता है और न विनाश-वह सदा विद्यमान रहता है, इसलिये सब द्रव्य द्रव्य-सामान्यकी अपेक्षासे कारण रहित हैं । अतएव नित्य हैं और एक ही स्थानमें-लोकाकाशमेंपरस्पर मिले हुए स्थित होनेपर भी अपने चैतन्यादि भिन्न भिन्न लक्षणों द्वारा जाने जाते हैं। उन सब (द्रव्यों)का मैं अपनी शक्त्यनुसार कथन करता हूँ। __ भावार्थ-द्रव्य छह हैं-जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल । ये सब ही द्रव्य अनादिनिधन हैं। क्योंकि ‘सत्का विनाश नहीं होता और न असत्का उत्पाद ही होता है। इस सिद्धान्तके अनुसार जो द्रव्य हैं उनका विनाश नहीं हो सकता और जो नहीं हैं उनका उत्पाद नहीं बन सकता; इसलिये द्रव्य अनादिनिधन हैं । उपलब्ध हो रहे हैं, इसलिये सत्स्वरूप हैंत्रिकालाबाधित सत्तासे विशिष्ट हैं। कारण रहित हैं, अतएव नित्य भी हैं । एक ही लोकाकाशमें अपने अपने स्वरूपसे स्थित हैं। चूँकि लक्षण सब द्रव्योंका अलग अलग है अतः एक जगह सबके रहनेपर भी एक द्रव्य दूसरे द्रव्यरूप परिणत नहीं होता और इसलिये उनका स्वतन्त्र अस्तित्व जाना जाता है । जीव-द्रव्य चेतन है, अवशिष्ट पांचों ही द्रव्य अचेतन हैं। इनमें पुद्गल-द्रव्य तो मूर्तिक है-रूप, रस, गन्ध और स्पर्शवान है। बाकी सभी द्रव्य अमूर्तिक हैं-चेतनता, गतिनिमित्तता, स्थितिहेतुत्व, अवगाहहेतुत्व ये इन द्रव्योंके क्रमशः विशेष-लक्षण हैं, जिनसे प्रत्येक द्रव्यकी भिन्नताका स्पष्ट बोध होता है। इन सबका आगे निरूपण किया जाता है। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003836
Book TitleAdhyatma Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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