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वीरसेवामन्दिर-ग्रन्थमाला तत्त्वोंका परिणाम और परिणामिभावजीवमजीवं द्रव्यं तत्र तदन्ये भवन्ति मोनान्ताः । चित्पुद्गलपरिणामाः केचित्संयोगजाश्च विभजनजाः॥३॥
अर्थ-उक्त सात तत्त्वोंमें जीव और अजीव ये दो तत्त्व तो द्रव्य हैं-परिणामी हैं और मोक्ष पर्यन्त के शेष पाँच तत्त्व जीव
और अजीव (पुद्गल) इन दोनोंके परिणाम हैं, जिनमें कुछ परिणाम तो संयोगज हैं और कुछ विभागज।
भावार्थ-आस्रव और बन्ध ये दो तत्त्व जीव और पुद्गलके संयोगसे निष्पन्न होते हैं। इस कारण इन्हें संयोगज परिणाम कहते हैं। तथा संवर, निर्जरा और मोक्ष ये तीन तत्त्व दोनोंके विभागसे उत्पन्न होते हैं । अतः ये विभागज परिणाम कहे जाते हैं। इस तरह उपर्युक्त सात तत्त्वोंमें आदिके दो तत्त्व परिणामी हैं और शेष तत्त्व उनके परिणाम हैं।
द्रव्योंका सामान्य-स्वरूपद्रव्याण्यनाद्यनिधनानि सदात्मकानि स्वात्मस्थितानि सदकारणवन्ति नित्यम् । एकत्र संस्थितवपूंष्यपि भिन्नलक्ष्मलक्ष्याणि तानि कथयामि यथास्वशक्ति ॥४॥ अर्थ-सब द्रव्य अनादि-निधन हैं-द्रव्यार्थिकनयसे आदिअन्त-रहित हैं, सस्वरूप हैं-अस्तित्ववाले हैं; स्वात्मामें स्थित हैं-एवम्भूतनयकी अपेक्षासे अपने अपने प्रदेशों में स्थित हैं।
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