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________________ प्रस्तावना हुआ है और कब बना है। परन्तु विद्वान् लोग १८-१९ बर्ष तक भी इस विषयका कोई ठीक निर्णय नहीं कर सके और इसलिए जनता बराबर अंधेरेमें ही चलती रही। ग्रन्थकी प्रौढ़ता, युक्तिवादिता और विषयप्रतिपादन-कुशलताको देखते हुए कुछ विद्वानोंका इस विषयमें तब ऐसा खयाल होगया था कि यह ग्रन्थ शायद पुरुषार्थसिद्धय पाय आदि ग्रंथोंके तथा समयसारादिकी टीकाओंके कर्ता श्रीअमृतचन्द्राचार्यका बनाया हुआ हो। पं० मक्खनलालजी शास्त्रीने तो इसपर अपना पूरा विश्वास ही प्रकट कर दिया था और पंचाध्यायी-भाषाटीकाकी अपनी भूमिकामें लिख दिया था कि "पंचाध्यायीके कर्ता अनेकान्त-प्रधानी श्राचार्यवर्य अमृतचन्द्रसूरि ही हैं।" परन्तु इसके समर्थनमें मात्र अनेकान्तशैलीकी प्रधानता और कुछ विषय तथा शब्दोंकी समानताकी जो बात कही गई उससे कुछ भी सन्तोष नहीं होता था; क्योंकि मूलग्रन्थमें कुछ बातें ऐसी पाई जाती हैं जो इस प्रकारकी कल्पनाके विरुद्ध पड़ती हैं। दूसरे, उत्तरवर्ती ग्रन्थकारोंकी कृतियोंमें उस प्रकारकी साधारण समानताओंका होना कोई अस्वाभाविक भी नहीं है। कवि राजमल्लने तो अपने अध्यात्मकमलमार्तण्ड (पद्य नं० १०) में अमृतचन्द्रसूरिके तत्त्वकथनका अभिनन्दन किया है और उनका अनुसरण करते हुए कितने ही पद्य उनके समयसार-कलशोंके अनुरूप तक रक्खे हैं। अस्तु ।। पं० मक्खनलालजीकी टीकाके प्रकट होनेसे कोई ६ वर्ष बाद अर्थात् अाजसे कोई २० वर्ष पहले सन् १९२४ में मुझे दिल्ली पंचायती मन्दिरके शास्त्र भण्डारसे, बा. पन्नालालजी अग्रवालकी कृपा-द्वारा, 'लाटीसंहिता' नामक एक अश्रुतपूर्व ग्रन्थरत्नकी प्राप्ति हुई, जो १६०० के करीब श्लोकसंख्याको लिये हुए श्रावकाचार विषय पर कवि राजमल्लजीकी खास कृति है और जिसका पंचाध्यायीके साथ तुलनात्मक अध्ययन करने पर मुझे यह बिलकुल स्पष्ट होगया कि पञ्चाध्यायी भी कवि राजमल्लजीकी ही कृति है। इस खोजको करके मुझे उस समय बड़ी प्रसन्नता हुई Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003836
Book TitleAdhyatma Kamal Marttand
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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