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अध्यात्म-कमल-मार्तण्ड विशेष परिचयमें आया, विद्वद्वर्य पं. गोपालदासजीने इसे अपने शिष्यों
को पढ़ाया, उनके एक शिष्य पं० मक्खनलालजीने इसपर भाषाटीका लिखकर उसे वीरनिर्वाण सं० २४४४ (सन् १९१८) में प्रकट किया,
और इस तरह पर समाजमें इसका प्रचार उत्तरोत्तर बढ़ा। अपने नाम परसे और ग्रन्थके आदिम मङ्गलपद्यमें प्रयुक्त हुए 'पश्चाध्यायावयवं' इस विशेषणपद परसे भी यह ग्रन्थ पाँच अध्यायोंका समुदाय जान पड़ता है। परन्तु इस वक्त जितना उपलब्ध है उसे अधिकसे अधिक डेढ़ अध्यायके करीब कह सकते हैं, और यह भी हो सकता है कि वह एक अध्याय भी पूरा न हो। क्योंकि ग्रन्थमें अध्याय-विभागको लिए हुए कोई सन्धि नहीं है और न पाँचों अध्यायोंके नामोंको ही कहीं सूचित किया है। शुरूमें 'द्रव्यसामान्यनिरूपण' नामका एक प्रकरण प्रायः ७७० श्लोकोंमें समाप्त किया गया है, उसे यदि एक अध्याय माना जाय तो यह ग्रन्थ डेढ़ अध्यायके करीब है और यदि अध्यायका एक अंश (प्रकरण) माना जाय तो इसे एक अध्यायसे भी कम समझना चाहिए। बहुत करके वह प्रकरण अध्यायका एक अंश ही जान पड़ता है, दूसरा 'द्रव्यविशेषनिरूपण' नामका अंश उसके आगे प्रारंभ किया गया है, जो ११४५ श्लोकोंके करीब होनेपर भी अधूरा है। परन्तु वह श्राद्य प्रकरण एक अंश हो या पूरा अध्याय हो, कुछ भी सही, इसमें सन्देह नहीं कि प्रकृत ग्रन्थ अधूरा है-उसमें पाँच अध्याय नहीं हैं और इसका कारण ग्रन्थकारका उसे पूरा न कर सकना ही जान पड़ता है। मालूम होता है ग्रन्थकार महोदय इसे लिखते हुए अकालमें ही कालके गालमें चले गये हैं, उनके हाथों इस ग्रन्थको पूरा होनेका अवसर ही प्राप्त नहीं होसका, और इसीसे यह ग्रन्थ अपनी वर्तमान स्थितिमें पाया जाता है-उसपर ग्रन्थकारका नाम तक भी उपलब्ध नहीं होता। ___ ग्रन्थके प्रकाशन-समयसे ही जनता इस बातके जाननेके लिए बराबर उत्कंठित रही कि यह ग्रन्थ कौनसे आचार्य अथवा विद्वान्का बनाया
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