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अध्यात्म-कमल-मार्तण्ड सम्पूर्ण नयोंके व्यापारसे रहित है, वास्तविकज्ञानसे परिपूर्ण है, वह निश्चयनयसे सम्यग्ज्ञानरूप चन्द्रमा है-अर्थात् निश्चयसम्यग्ज्ञान है। ___ भावार्थ-जो अपने ज्ञायकस्वरूपमें स्थिर होता हुआ परपदा
र्थोकी परिणतिसे भिन्न चैतन्यात्मक गुणसमूहका दृष्टा है, चेतनाके पर्यायभेदोंका ज्ञायक है अतएव सविकल्प है, राग-द्वेषादिसे रहित है, और नय-प्रवृत्तिसे विहीन है उसे निश्चय सम्यग्ज्ञान कहते हैं । विशेषार्थ--यहाँ चेतना-पर्यायोंका जो ग्रन्थकारने 'चिञ्चित्पर्यायभेद' शब्दों द्वारा उल्लेख किया है उसका खुलासा इस प्रकार है--चेतना अथवा चेतनाके परिणाम तीन रूप हैंज्ञानचेतना, कर्मचेतना और कर्मफलचेतना । ऐसे अनेक जीव हैं जिनके ज्ञानावरण, दर्शनावरण मोहनीय और वीर्यांतराय रूप कर्मोका उदय है और कर्मोदयके कारण जिनकी आत्मशक्ति अविकसित है-कर्मोदयसे सर्वथा ढकी हुई है, अतएव इष्ट अनिष्टरूप कार्य करने में असमर्थ हैं-निरुद्यमी हैं और विशेषतया सुख-दुःखरूप कर्मफलके ही भोक्ता हैं, ऐसे एकेन्द्रिय जीव प्रधानतया कर्मफलचेतनाके धारक होते हैं। और जिन जीवों* कम्माणं फलमेक्को एक्को कज्जं तु णाणमध एको ।
चेदयदि जीवरासी चेदगभावेण तिविहेण ॥ -- पंचास्ति० ३८ परिणमदि चेदणाए यादा पुण चेरणा तिधा भणिदा । सा पुण णाणे कम्मे फलम्मि वा कम्मणो भणिदा ॥
--प्रवचनसार ३१ + 'एके हि चेतयितारः प्रकृष्टतरमोहमलीमसेन प्रकृष्टतरज्ञानावरणमुद्रितानुभावेन चेतकस्वभावेन प्रकृष्टतरवीर्यातरायाऽवसादितकार्यकारणसामाः सुखदुःखरूपं कर्मफलमेव प्राधान्येन चेतयन्ते ।
---पंचास्ति तत्व० टी० ३८
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