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________________ नक्षत्रे पैतालीस मुत्तिया नै विषे दोय डाभ नां पूतला करवा । अने सम क्षेत्र तेतीस मुहत्तिया नक्षत्र १५, ते अश्विनी १, कृत्तिका २, मृगसिरा ३, पुष्य ४, मघा ५, पूर्वा फाल्गुनी ६, हस्त ७, चित्रा ८, अनुराधा ९, मूल १०, पूर्वाषाढा ११, श्रवणा १२, धनिष्ठा १३, पूर्वाभद्रपदा १४, रेवती १५-ए पन्नरै तीस मुहत्तिया सम क्षेत्र नक्षत्र में विषे एक डाभ नों पूतलो करवो। अपार्द्ध भोगी ते पन्नर महतिया ६ नक्षत्र-शतभिषग १, भरिणी २, आर्द्रा ३, अश्लेषा ४, स्वाति ५, ज्येष्ठा ६ ए अपार्द्ध क्षेत्र छह नक्षत्र में विषे अनै अभीचि विषे एक ही न करणो इति गाथार्थ:। ए आवश्यकनियुक्ति तेहनी परिठावणीया समिति नी वृत्ति मध्ये कह्यो ते विरुद्ध । एहवा वचन चवदै पूर्वधारी ना न हुदै । वलि आवश्यकनियुक्ति में एहवी गाथा कही --- उज्जेणीए जो जंभगेहि आणक्खिऊण थुयमहिओ। अखीणमहाणसियं सीहगिरिपसंसिरं वंदे ।।७६६।। जस्स अणुण्णाए वायगत्तणे दसपुरम्मि नयरम्मि । देवेहि कया महिमा पयाणुसारि नमसामि ।।७६७।। जो कण्णाइ धणेण य निमंतिओ जुव्वणम्मि गिहवइणा। नयरम्मि कुसुमनामे तं वइररिसिं नमसामि ॥७६८।। जे कन्या करिकै धन करिक निमंत्रियो योवन नै विषे ग्रहपतिइं कुसम नामे नगर न विषे, ते वयर-ऋषि प्रतै नमस्कार करूं जेणद्धरिया विज्जा आगासगमा महापरिणाओ। वंदामि अज्जवइरं अपच्छिमो जो सुयहराणं ।।७६९।। जो ए आवश्यकनियुक्ति भद्रबाहु स्वामी चवद पूर्वधर तेहनी कीधी हुदै तो ए भद्रबाहु थकी घणां वर्षा पछै वज्र स्वामी थया छ । ते वज्र स्वामी मैं नमस्कार ए नियुक्ति नै विर्षे किम करचो ? ते भणी ए चवद पूर्वधर भद्रबाहु नीं कीधी कहै ते न मिल । वली तीजो अनुयोग निरवशेष कह्य, ते सूत्र अर्थ नियुक्ति सर्व प्रकारे कहिवू । नाम, स्थापना, द्रव्य, भाव अथवा नेगमादिक नय करी कहिवी। इहां केतलाएक कहै—निरवशेष नां अर्थ टीकाकार पिण टीका, चुणि, भाष्य नों अर्थ नथी कियो अन टबा विषे पिण नथी कियो । टीकाकार निरवशेष नों अर्थ कियो ते लिखियै छ--निरवशेष ते प्रसक्त अनुप्रसक्त अर्थ नै कहिवा थकी । अनै टबा ने करणहार निरवशेष नो अर्थ कियो ते लिखियै छ-तीजो वलि अनुयोग सूत्र अर्थ नियुक्ति सर्व प्रकारे ते निरवशेष एह टबा में कह्य ते भणी सर्व प्रकारे ते नय-निक्षेपादिके करी सूत्रादिक नै कहै ते निरवशेष संभवै । ए निरवशेष तीजो अनुयोग भगवती में प्रभु गोतम ने कह्यो सर्व प्रकारे करिवू ते वेला तो ए टीका, चणि, भाष्य न हंता । अन नय-निक्षेपादिक सर्व प्रकारे करि ते वेला पिण होइ। वलि केतला एक कहै-ए टीका अर्थागम छ, ते सूत्रागम जिम छ । तेहनों उत्तर-जे शब्द मूल सूत्र मध्ये हुवै ते पाठ नां शब्द नों अर्थ टीका में फलावियो ते टीका तो प्रमाण , अर्थागम मध्य पिण होई । पिण मूल पाठ मध्य तो ते वस्तुज नथी, तेहनों टीका में विस्तार कियो ते पाठ सूं नहीं मिले, ए अर्थ नां धणी कण ? ते माटै प्रकीर्ण ग्रंथ, टीका, चूणि , भाष्य सिद्धांत थकी मिल ते प्रमाण । अने जे टीकादिक नों अर्थ विरुद्ध मान्यां छतां सिद्धांत विगट ते प्रमाण नथी। सूत्र तो गणधर कृत भगवान थकां रा चाल्या आवै छ। ४६ भगवती जोड़ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003623
Book TitleBhagavati Jod 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages498
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
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