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________________ अने जे कोई कहे निर्यक्ति सूत्र की खुदी हंसी तो भगवती में क होते वीर थकां नियुक्ति जुदी कहै ते हिवडां रही नथी । अन भद्रबाहु नीं कीधी कहै तो भद्रबाहु स्वामी तो पर्छ थया । तेहनों कीधी नियुक्ति तीर्थंकर थकां भगवती में क्या थी आवी ? ग्रामो नास्ति कुतः सीमा जे ते वेला भद्रबाहु नथी तो तेहनी कीधी नियुक्ति भगवती में किम कही ? इहां तो गोतम प्रतं भगवान का जे सूत्रार्थ मात्र प्रथम अनुयोग करि भने बीजो अनुयोग जिनादि को ते करिबुं । इण लेखे भद्रबाहु पहिला निर्मुक्ति हुंती ते सूत्रे कही छे, ते प्रमाण छ । निकिमि भगवंत छतां जे सूत्रे तो दृष्टिवाद पिण का है और अनेक सूत्र नां नाम कह्या छै । पण जे विच्छेद गया, ते हिवडां नथी । तिमहिज निर्युक्ति प्रभु थकां जो सूत्र थकी जुदी कहै तो ते पण विच्छेद गई । ते प्रभु थकां री नियुक्ति जुदी बतावो ते मानवा जोग्य । जिम आचारंगादिक हिवडां छँ ते नियुक्ति हिवडा देखाओ । अन ए भद्रबाहु स्वामी कीधी नियुक्ति कहै तेहने विषे अनेक तो तो विरुद्ध बोल कह्या छे । ते लेखे ए भद्रबाहु री कीधी न संभव। ठाणांग चढवे ठाणे [४३] सनतकुमार व अंतक्रिया कीधी कही अ] आवश्यक नियुक्ति (गाचा ४०१] में तथा ठाणांग नीं टीका [बृ. प. १७१] में तीजे देवलोक कहै छे, ए सूत्र विरुद्ध १ । उववाई [सू. १८७ ], भगवती [ ९/४० ] पण्णवणा [ २०६७ गा. ६ ] में कह्यो पांचसौ धनुष्य उपरंत न सी, ते उपरांत युगलियो कहिये । अन आवश्यक नियुक्ति [ गाथा १५६,१६० ] में कह्यो जे मरुदेवी माता नी अवगाहना सवा पांच सौ धनुष्य नीं सीझी कहै, ए विरुद्ध २ । समवायंग] [२४२३] में बासि शह्मी, अनं आवश्यक नियुक्ति म सुंदरी ए ५ नों सरीखो आयो ६४ लाख पूर्व मध्ये कह्यो - ऋषभ ९९ पुत्र सहित [ एक भरत टाली नैं ] अने भरत नां भरत पुत्र एवं १०८ उत्कृष्टी अवगाह्नावंत एक सप्तम में सिद्धा, ते गाथा उसहो उसहसुया भरहेण विवज्जिया नवनवई । भरहस्स अट्ठ सुया सिद्धा एगम्मि समयम्मि ॥ इहां ऋषभ अने बाहुबली सरीखा आउखा नां धणी साथे सिद्धा कहै, ए विरुद्ध ३ । मल्लिनाथ न चारित्र अने केवलज्ञान ज्ञाता अधेन [नाया. २२२२२५] अनं आवश्यक नियुक्ति [गाया सुदि ११ कहै, ए विरुद्ध ४ । बली आवश्यक नियुक्ति में को साधु का करें पंचक में तो तला डा नां करवा अन आज भलो ग्रहस्थ होवें ते पिण ए काम न करें । जे साधु 'काल करें तो वांस जाची ल्यावी झोली करी एकांते परिठवी आवे ए बृहत्कल्प [ ४ २५] सूत्रे कह्यो । आवश्यक नों नियुक्ति में कह्यो साधु काल करें पंचक में तो पूतला डाभ नां करवा कह्या, ते पाठ लिखिये है में पो. सुदि ११ २५० ] में मृगसर दोणिय दिवढखेत्ते दब्भमया पुत्तला कायव्वा । समखेत्तम्मिय एक्को अवड्ढभीइण कायव्वो । Jain Education International इहां दोढ नक्षत्र नैं विषे दोय डाभ नां पुतला करवा । तीस मुहूर्ते एक क्षेत्र कहिये अने पैंतालीस मुहूर्ते दोढ क्षेत्र कहिये । ते उत्तरा फाल्गुनी १, उत्तराषाढा २, उत्तरा भद्रपदा ३, पुनर्वसू ४, रोहिणी ५, विशाखा ६ ए छह For Private & Personal Use Only श० २५, उ० ३, ढा० ४३८ ४७ www.jainelibrary.org
SR No.003623
Book TitleBhagavati Jod 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages498
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
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