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________________ त्ति एवमिति--पूर्वप्रदर्शितप्रकारवता सूत्रेणाचाराद्यङ्गप्ररूपणा भणितव्या यथा नन्द्यां सा च तत एवावधार्या, अथ कियद्रमियमङ्गप्ररूपणा नन्द्युक्ता वक्तव्या इत्याह - जाव सुत्तत्थो' (वृ. प. ८६८, ८६९) छते तेहन विषे वैनयिक - अर्थपणुं रह्योज छै ते सर्व रह्या अर्थ पिण ते प्रधानपणुं जणावा नै अर्थे ईज इम जाणवू, इम अंग परूवणा भणवो। जिम नंदी नै विषे कही, तिम जाणवी। अथ किहां लगे ए अंग परूपणा नंदी में कही, ते कहिवी 'जाव सुत्तत्थो खलु पढमो' ए गाथा लगै । ८५. सूत्रार्थ मात्र प्रतिपादन तत्पर, सूत्रार्थ अनुयोग एहो जी। ए धुर अनुयोग गुरु शिष्य ने कह्यो, मोहमति मती थावेहो जी ।। ८६. सूत्रस्पर्शिक नियुक्तिमिश्रज, करिवं अनुयोग बीजे जी। तीर्थंकरादिक एम भण्यु छ, हिव तृतीय अनुयोग कहीजे जी ।। ८७. निविशेष अनुयोग ए तीजो, सूत्र अर्थ नियुक्ति जी। सर्व प्रकार करी कहिवा थी, ए विध अनुयोगे उक्ति जी ।। ८८. सूत्र तणों जे अर्थ करीन, अनुरूप योग करीजै जी। ते अनुयोग विषे विप्रकार नी, विधि पूर्वोक्त भणीज जी ।। वा० सुत्रार्थमात्र नों प्रतिपादन करणहारो पहलो सूत्रार्थानुयोग कहिये । खलु निश्चयार्थे एतले गुरु सूत्रार्थ कहितांरूपज पहलो अनुयोग करै, जे भणी विस्तारी ने कहे तो नवदीक्षित शिष्य नी मति मुरझाए । बीजो अनुयोग सूत्रस्पशिक-नियुक्ति-मिश्र करिवो कह्यो तीर्थंकरादिके। तीजो बलि अनुयोग निरवशेष ते सूत्र थकी प्रसक्त एतले बंधाणा अथवा अनुप्रसक्त नहीं बंधाणा अनेरा समस्त अर्थ नों कहिवा थकी निरवशेष अनुयोग कहियै । ए पूर्वोक्त त्रिण प्रकार नीं विधि हुवै । अनुयोग नै विषे अनुयोग एतले सूत्र नै अर्थ करिके अनुकूलपण योग करिवो। इहां कोई कहै -भगवंते नियुक्ति कही, तुम्हैं किम नथी मानता? तेहनै कहिय सूत्र में कही नियुक्ति तिका मानवा योग्य छै। जद अनेरा कहै-ए भद्रबाहु नी कीधी नियुक्ति किम नथी मानो ? तेहनै कहिये -जे भगवती सूत्र में निर्यक्ति कही छै, ते भगवती सूत्र तीर्थकर छतां हुँतो अन तेहनै विषे नियुक्ति कही । ते पिण तीर्थंकर थकां हुंती, ते मानवा जोग्य छ। ए नियुक्ति कही ते सूत्र नै विषे ईज रही जणाय छ। समवायंग नै विषे अंग-परूपणा कही, तिहां एहवो पाठ छै --- आयारस्स णं परित्ता वायणा संखेज्जा अणुओगदारा संखेज्जाओ पडिवत्तीओ संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेज्जाओ निज्जूत्तीओ से णं अंगट्टयाए पढमे अंगे। इहां प्रथम अंग नै विष संख्याता श्लोक कह्या अनै संख्याती नियुक्ति कही। जिम आचारंग नै विषे श्लोक कह्या तिमहिज ते आचारंग नै विषेईज नियुक्ति संभव । ते समवायंग नी टीका में तथा टबा में अर्थ कियो, ते लिखिये है--सूत्र नै विषे कहिवापण करी थाप्या अर्थ नु योजवं ते युक्ति, विशेष घटनाई योजवू ते नियुक्ति । ए नियुक्ति नों अर्थ कियो ते भणी सूत्र नै अंतरईज नियुक्ति संभव। जिम सूत्र नै विषे संख्याती वाचना, संख्याता अनुयोगद्वार उपक्रमादिक, संख्याती पडिवत्ती द्रव्यादिक पदार्थ, तेहy मतांतरे प्रतिपत्ति, संख्याता वेढा छंद विशेष, संख्याता श्लोक अनुष्टुप छंद। तिम सूत्र नै विषे संख्याती निर्यक्ति संभवै । वा. सूत्रार्थमात्रप्रतिपादनपरः सूत्रार्थोऽनुयोग इति गम्यते, खलुशब्दस्त्वेवकारार्थः स चावधारणे इति, एतदुक्तं भवति–गुरुणा सूत्रार्थमात्राभिधानलक्षण एव प्रथमोऽनुयोगः कार्यो, मा भूत् प्राथमिकविनेयानां मतिमोह इति, द्वितीयोऽनुयोगः सूत्रस्पर्शकनिर्यक्तिमिश्रः कार्य इत्येवंभूतो भणितो जिनादिभिः, 'तृतीयश्च' तृतीय: पुनरनुयोगो निरवशेषो निरवशेषस्य प्रसक्तानुप्रसक्तस्यार्थस्य कथनात् 'एष.' अनन्तरोक्तः प्रकारत्रयलक्षणो 'भवति' स्यात् 'विधिः' विधानम् 'अनुयोगे' सूत्रस्यार्थनानुरूपतया योजनलक्षणे विषयभूते इति गाथार्थः । (व. प. ८६९) ४६ भगवतो जोड Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003623
Book TitleBhagavati Jod 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages498
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
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