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________________ सोरठा १८. जीव मनुष्य नैं जाण, समान धर्मपणां थकी । तिन कारण पहिछाण, जीव कह्यो तिम मनुष्य पिण । १९. *व्यंतर असुर तणीं परं रे, गवरं लेश्या जे जाणवी, शेष तिमहिज रे कहि तहतीक के समुच्चय जीव में पाप कर्म बंध-अबंध नां भांगा १. समुच्चय जीव में २. सलेशी में ३. कृष्णलेशी में ४. नीललेशी में ५. कापोतलेशी में ६. ७. पद्मलेशी में ८. शुवली में ९. अलेशी में १०. कृष्णपाक्षिक में ११. शुक्ल पाक्षिक में १२. समदृष्टि में १२. में १४. मिष्टि में १५. सनाणी में १६. मतिनाणी में हम ज्योतिषि वैमानीक । १७. श्रुतनाणी में १८. अवधिनाणी में १९. मनपर्यवनाणी में २०. केवलनाणी में २१. अनाणी में २२. मतिअनाणी में २३. नामी में २४. विभंगअनाणी में २५. आहारसोबत्ता में २६. भयसण्णोवउत्ता में २७. मेणा में २२. परिभ्रमणवत्ता में २९. नोसण्णोवउत्ता में ३०. सवेदी में ३१. स्त्रीवेदी में ३२. पुरुषवेद में ३३. नपुंगवेद में ३४. अवेदी में ३५. सकषायी में *लय सुरतरुनी परं दोहिलो Jain Education International १ भंग बंधी बंध बंधि स्सइ २ ४ १ २ ૪ २ २ ૪ १ २ २ २ पार्व पार्व पार्व पाये .1111111111111141111 नहीं पार्व पार्व पार्व पार्व पार्व पाव २ बंधी बंधइ ३ बंधी नबंध न बंधि | बंधि - स्सइ स्सइ पार्व पार्व नहीं नहीं नहीं नहीं पार्व पार्व पार्व पार्व पार्व पाव पार्व TTTTTTTTTTTTTEETE नहीं नहीं नहीं नहीं पाव पार्व पार्व नहीं पार्व नहीं नहीं पार्व पार्व नहीं नहीं पार्व पाव पार्व पाव पार्व पार्व पाव पार्व पाव पार्व पार्व 1 पार्व पार्व पार्व पार्व पार्व नहीं पाव पार्व पार्व नहीं पार्व पार्व पाव पार्व पार्व पाव पार्व पार्व पार्व पार्व नहीं नहीं नहीं नहीं पायें नहीं पार्व नहीं पार्व नहीं पार्व नहीं पार्व पार्व पार्व नहीं ४ बंधी | न बंधइ न बंधि - स्सइ पार्व नहीं पार्व नहीं नहीं पार्व पार्व पार्व पाव पार्व पार्व नही नहीं नहीं केके के कैसे कैसे कैसे बचे. के.के. नहीं पार्व १८. 'बणसस्मे' स्यादि, या जीवस्य निर्विशेषणस्य सलेश्यादिपदविशेषितस्य च चतुर्भग्यादिवक्तव्यतोक्ता सा मनुष्यस्य तथैव निरवशेषा वाच्या, जीवमनुष्ययोः समानधर्मत्वादिति । (बु.प. ९३१) १९. वाणमंतरस्स जहा असुरकुमारस्स । जोसियस वैमाणियस्स एवं चेव । नवरं - लेस्साओ जाणियव्वाओ, सेसं तव भाणियव्वं । (श. २६/१२) For Private & Personal Use Only प्रश० २६, उ० १. ढा० ४७० २५३ www.jainelibrary.org
SR No.003623
Book TitleBhagavati Jod 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages498
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
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