SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 270
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७. नाणी आभिणिबोहियनाणी सुयनाणी ओहिनाणी। ८. अण्णाणी मइअण्णाणी सुयअण्णाणी विभंगनाणी। ९. अाहारसण्णोवउत्तं जाव परिग्गहसण्णोवउत्ते, सवेदए नपुंसकवेदए । १०. सकसायी जाव लोभकसायी, सजोगी मणजोगी वइ जोगी कायजोगी। ११. सागारोवउत्ते अणागारोवउत्ते--एएसु सम्वेसु पदेसु पढम-बितिया भंगा भाणियव्वा । १२. एवं असुरकुमारस्स वि वत्तब्वया भाणियब्वा । नवर ७. इम ज्ञानी नारक विषे रे, आभिनिबोधिकवंत । श्रुत फुन अवधिज्ञानी विषे, धुर भांगा रे दोय भणवा मंत कै । ८. अज्ञानी नारक विषे, मति अज्ञानी मांहि । श्रुत विभंग नारक विषे, धुर भंगा रे बे भणवा ताहि कै ।। ९. आहारसण्णोवउत्ता विषे रे, जाव परिग्रह जाण । सवेदी नारक विषे वली, नपंसक रे वेद बे आण के। १०. सकषाई नारक विषे रे, जावत लोभकषाय । बे भंग सजोगी नारके, मन वच जोगी रे कायजोगी मांय कै। ११. सागारोवउत्त नारक विषे रे, उपयुक्त फुन अनाकार । ए सहु पद नै विषे हवै, प्रथम बीजो रे भांगा बे धार के ।। वा० ... हिवं भवणपति में ३७ बोल पावै तेहन अधिकार कहै छै-- १२. इमहिज असुरकुमार नी रे, वक्तव्यता सूविधान । णवरं इतरो विशेष छ, तिको कहिये रे सुणजो धर कान कै ।। - १३. तेजुलेशी स्त्रीवेदगा रे, पुरुष वेद पिण पाय । नपुंसक वेद भणवो नथी, शेष तिमहिज रे नारक जिम ताय कै।। १४. सगलाई स्थानक विषेरे, धूर बे भंगा धार । एवं जावत जाणवा, ___ जिन भाख्या रे ए तो थणियकुमार कै ।। हिवै पथ्वी पाणी आदि नों अधिकार---- १५. पृथ्वीकायिक पिण इह विधे रे, इमहिज फुन अपकाय । इम जाव पंचेंद्री तिर्यंच में, सहु ठामे रे धुर बे भंग पाय के। १६. णवरं जेहने लेश्या जिका रे, दृष्टि रु ज्ञान अज्ञान । वेद जोग जेहने जसु, तसु कहिवो रे शेष तिमहिज जान कै ।। वा-पृथ्वी, पाणी, वनस्पति में २७ बोल पावै । तेऊ, वाऊ में २६ । विकलेंद्री में ३१ । तिर्यंच पंचेंद्री में ४० बोल पावै। मनुष्य में ४७ बोल पावै, तेहनों अधिकार कहै छ - १७. वक्तव्यता जिका जीव नी रे, सलेश आदि पदेह । चतुर भंगादिक नी कही, तिमहिज कहिवी रे, सह मनुष्य विषेह के ।। १३. तेउलेसा, इत्थिवेदग-पुरिसवेदगा य अब्भहिया, नपुंसगवेदगा न भण्णं ति, सेसं तं चेव । एव जाव पणिय १४. सव्वत्थ पढम-बितिया भंगा। कुमारस्स। १५. एवं पुढविकाइयस्स वि, आउकाइयस्स वि जाव पंचिदियतिरिक्ख जोणियस्स वि सम्वत्थ वि पढमबितिया भगा। १६. नवरं --जस्स जा लेस्सा । दिट्ठी, नाणं, अण्णाणं, वेदो, जोगो य अस्थि तं तस्स भाणियब्ब, सेसं तहेव । १७. मणूसस्स जच्चेव जीवपदे वत्तव्वया सच्चेव निरवसेसा भाणियब्वा । .... २५२ भगवती जोड़ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003623
Book TitleBhagavati Jod 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages498
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy