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________________ वा०-पांच ज्ञान, तीन अज्ञान सागारोव उत्ता कहीजे अन च्यार दर्शण अणागारोव उत्ता कहीजै । वा०-अट्टविहे सागारोवओगे .....। चउबिहे अणागारोवओगे........। (पण्णवणा ३१।१,२) ८०. छबीसम धुर देश ए, चिहुंसौ गुणंतरमी ढाल । भिक्षु भारीमाल ऋषिराय थी, 'जय-जश' हरष विशाल ।। दाल:४७० चौबीस दण्डकों के बन्ध-अबन्ध वा-हिवं चउवीस दंडके एकीका दंडक विष इग्यारे-इग्यारे द्वारे करी कहै छ। नारकी में बोल पा ३५, तेहनों अधिकार कहै छ १. नेरइए णं भंते ! पावं कम्म कि बंधी बंधइ बंधिस्सइ? २. गोयमा ! अत्थेगतिए बंधी, पढम-बितिया । (श. २६।१६) 'पढमबीय' त्ति नारकत्वादौ श्रेणीद्वयाभावात् प्रथमद्वितीयावेव। (व.प. ९३१) १. नारक हे भगवतजी! पाप कर्म जे पंक। बांध्या बांध बांधस्यै, चिहं भंग प्रश्न अवंक ।। २. जिन भाखै सुण गोयमा ! प्रथम द्वितीय भंग दोय । उपशम क्षायक श्रेणि नां, अभाव थी अवलोय ।। ३. इम सलेशादिक जिके, विशेष करिके जेह । नारक पद धुर दंडके, सांभलियै चित देह ।। *सुणजो रे भव प्राणी ! मत भमजो रे चिहं गति दुख अंग के । सेवो रे जिन वाणी, तुम्हे रमजो रे संजम सुख संग कै ।। चेतो रे भव प्राणी ! (ध्रुपदं) ४. सलेशी प्रभु ! नेरइयो जी, पाप कर्म पूछेह । इमहिज धुर भंग बे हुवै, समुच्चै नारक रै कह्यो तेम कहेह के ।। ५. इम कृष्णलेशी नारक विषे रे, नीललेशी नै विषेह। कापोतलेशी नारक विषे, धुर भंगा रे भणवा इम बेह कै॥ ६. इम कृष्णपाक्षिक नारक विषे रे, शुक्लपाक्षिक में एम । समदृष्टि नारक विषे, मिथ्यादष्टि रे मिश्रदष्टि तेम कै। *लय : सुरतरु नी पर दोहिलो लही मानव अवतार ४. सलेस्से णं भंते ! नेरइए पावं कम्म? एवं चेव । ५. एवं कण्हलेस्से वि, नीललेस्से वि, काउलेस्से वि । ६. एवं कण्हपक्खिए सुक्कपक्खिए, सम्मदिट्ठी मिच्छादिट्ठी सम्मामिच्छादिट्ठी। श० २६, उ०१, ढा० ४६९.४७० २५१ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003623
Book TitleBhagavati Jod 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages498
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
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