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संयत का क्षेत्र
३३. "प्रभु ! सामायिक स्यूं जाणां जी, जिन०,
लोक तणें पहिचाणी जी, जिन० । भाग संख्यातमै माणी जी, जिन०,
के असंख पृच्छा ठाणी जी ? जिन० । जिन कहै नहीं संख्या में भागे,
पुलाक' जिम अवलोय || प्रभु ! सामा० || सोरठा
३४. सामायिक घर माग, लोक वर्ग असंख्यातमें भाग, नयी शेष ३५. *इम जाव सूक्ष्मपरायो जी, गो०,
स्नातक जिम कहिवायो जी, गो०,
यथास्यात हिव आयो जी, गो० ।
ए चिहुं नं
तीन भेद में थायो जी,
संख्याता नां बोल अछे बे,
इम० ॥
तेह विषे नहीं होय ॥ बा०—यथाख्यात लोक नां संख्यातमा भाग नै विषे न हुवै, घणां संख्याता भाग नै विषे न हुवै । अनैं लोक नां असंख्यातमा भाग नै विषे हुवै, घणां असंख्याता भाग नै विषे हुवै, सर्व लोक नैं विषै हुवे – इम तीन बोल नैं विषे हुवे अने दोय बोल नैं विषे न हुवे ।
संयत द्वारा लोक की स्पर्शना
३६. * प्रभु ! सामायिक एहो जी, जिन०, लोकर्णं स्यूं हो जी, जिन० । संख्यातम भागे हो जो, जिन०, फर्म चारित हो जी, जिन० ।
जिम ह्वै कह्यं बतीसम द्वारे, संगत किस भाव में ? ३७. प्रभु ! सामायिक अवलोई जी, जिन०,
तब जिन भाखं सोई जी, जिन०,
*लय : माता सुत ने भाखे जी १. श० २५।४४०
१९८ भगवती जोड़
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।
जाणवुं । विषे ॥
एव जाव सूक्ष्मपरायज, ३८. यथाश्वात सुखदायो जी, जिन०,
तब भाव जिनरायो जी, गो०,
कहि तिम फशह । प्रभु० !
अथवा क्षायक भाव विषे ह्वै,
गो० ।
किस भाव में होई जी ? जिन० ।
क्षयोपशम भावे जोई जी, गो० । व्यारू चरण कहेह ॥ प्रभु० ! 'तास प्रश्न पूछायो जी, जिन० ।
उपशम भावे थायो जी, गो० । वारू न्याय विचार || यथाख्यात० ॥
३२. सामाइए गं भंते! लोगस्स कि होण्डा,
असंखेज्जइभागे - पुच्छा ।
गोमा ! नो संखेज्जइभागे जहा पुलाए ।
३५. एवं जाव सुहुम संपराए । सिणाए ।
३६. सामाइयसंजए णं भंते! लोगस्स कि संखेज्जइभागं फुस ? जब होगा तब फुल (म. २५०५४४)
अहक्खायसंजए जहा ( . २५०५४३)
३७. सामाइए गोपमा सुहुमसंपराए ।
भंते! कवरम्मि भावे होगा ? बोलिए भावे होगा एवं जाब (T. KIXVX)
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३८. अहवाय संजए - पुच्छा ।
गोयमा ! उवसमिए वा खइए वा भावे होज्जा । (. २५०२४६)
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