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वर्षे जंबू मोक्ष गया । तठा पर्छ केवल पिण विछंद थयो । अनैं परिहारविशुद्ध चारित्र पिण विछेद थयो । ए चउरासी हजार वर्ष मांहि थी ए चउसठ वर्ष ऊणां थया । अने उत्सप्पिणी नैं विषे तीजा अरा नां तीन वर्ष साढा आठ मास गयां प्रथम तीर्थंकर जन्मस्य ते तीस वर्ष घर में रहिस्यै । दीक्षा ग्रही बारे वर्ष तेरे पखवाडां छद्मस्थ रही केवल पामस्यै पर्छ तेहने आदेशे परिहारविशुद्ध चारित्र हु तो अटकाव नहीं । ए तीजा अरा नां वर्ष पूर्व चउसठ वर्ष मांहि थी काढियां लार अल्पहीज चउरासी हजार वर्ष में ऊणा इम हुवै तो किंचित मार्ट गिण्या नथी ।
गीतकछंद
२६. उत्कृष्ट कोटाकोड़ि अष्टादश उदधि जिन आखियो । तसु न्याय द्वितीय चरित्रवत, इह द्वार मांहिज दाखियो ||
२९. बहुवच सूक्ष्मसंपरायो जी, जिन०,
जघन्य समय इक पायो जी, गो०,
निग्रंथ जिम कहिवायो जी, गो० ।
यथाख्यात सामायिक नीं पर,
उत्कृष्ट मास षट थायो जी, गो० ।
बहुवचने एथाय ॥ बहुवच सु० ।।
वा० - 'सिद्ध गमन नुं विरह उत्कृष्ट पट मास नों हुवं ते षट मास तांइ कोई क्षपकश्रेणि न चढ़ें ते मार्ट सूक्ष्मसंपराय नुं अंतर उत्कृष्ट षट मास नों हुवे । अ यथाख्यात बहुवचने केवली सामायिक नीं पर सदा शाश्वता लाभ।' (ज. स )
संयत में समुद्धात
३० *सामायिक में स्वामी जी, जिन०,
समुद्घात कति धामी जी ? जिन० । जिन भाखे पट पामी जी, मो०,
छेदोपस्थापनी इमहिज कहिवो,
कषायकुशील ज्यं नामी जी, गो० ।
इक केवल नहि पाय ।। सामायिक ० ।।
३१. परिहारविशुद्ध नैं ताह्यो जी, गो०,
*लय माता सुत नें भाई जी
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धुर समुद्घात त्रिण पायो जी, गो०,
पुलाक जिम कहिवायो जी, गो० ।
निग्रंथ नीं परि समुद्घात नहीं,
हिव सूक्ष्मसंपरायो जी, गो० ।
स्नातक जिम अक्खाय ॥ परिहार० ॥ सोरठा
३२. यथाख्यात है मांय, स्नातक नीं परि जाणवुं । समुद्घात इक पाय, केवल कोइक में विषे ।।
विशुद्धिककालो यश्वत्सपिण्यास्तृतीयायां परिहारविशुद्धिप्रतिपत्तिकाला कालो नासी विक्षितत्वादिति,
(बृ. ९१०)
२८. उक्को सेणं अट्ठारस सागरोवमकोडाकोडीओ 1 छेदोपस्थापनीयोत्कृष्टान्तरवदस्य भावना कार्येति ।
(बृ. प. ९९०) २९. सुहुमसंपरायाणं जहा नियंठाणं । अहखायाणं जहा सामाइयसंजयाणं । (. २५०५४१)
३०. सामाइयसंजयस्स णं भंते ! पण्णत्ता ?
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कति समुग्धाया
गोयमा ! छ समुग्धाया पण्णत्ता जहा कुसीलस्त एवं घेोषावि
२१. परिहारविस्स जहा गुलामरस हुबसंपरामस्स जहा नियंठस्स । अक्खायस्स जहा सिणायस्स । (२५५४२)
कषाय
श० २५, उ० ७, ढा० ४६०
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