________________
'वलि जीवाभिगम में कह्यं मनुष्य- स्त्री नीं केतला काल नीं स्थिति परूपी ? क्षेत्र आश्रयी जघन्य अंतर्मुहूर्त, उत्कृष्ट तीन पल्य पृथक कोड़ पूर्व अधिक न्याय पूर्ववत । अनं धर्म चरण आश्रयी जघन्य अंतर्मुहूर्त्त उत्कृष्ट देश ऊण कोडि पूर्व । इहां पिणस्थिति री पूछा में जघन्य अंतर्मुहूर्त्त ही । अंतर्मुहूर्त नीं स्थिति कही ते न्याय इहां पिण संभव । केवच्चिरं होई ? तिहां तो जघन्य एक समय का छे पण्णत्ता ? एहवी पूछा में जघन्य अंतर्मुहूर्त का छे एहनुं संभवे । यति बहुत कड़े ते सत्य (ज.स.)
जे धर्मदेव नीं जघन्य इहां पूछा में कालओ अने केवई कालं ठिती न्याय पूर्वे का तिम
३३. उत्कृष्टो देश ऊण जे गो०! नव वर्ष ऊणों न्हाल पूर्व कोड़ कहीजिये गो० !
हिव कहूं न्याय विशाल हो
सोरठा
३४. नवमो लामो तास,
आख्यो तसु नव वास, ३५. सूत्र उनवाई मांय,
जघन्य बकी कहिवाय
देश वर्ष नवमा तणों । देशप्रतं वर्ष संग्रह्यो । साधिक अठ वर्षायुखो । ते सिवपद में संचरं ।
३६. आयू कहियै आम,
ते पामे शिवधाम, ३७. जे साधिक अठ वास,
इहां कह्या छे तास, ३८. उत्कृष्टो पुव्व कोड़,
पामै शिव सुख जोड़, ३९. * इमहिज छेदोपस्थापनी गो० !
हो स० !
गर्भ काल पिण संग्राह्यो । प्रत्यक्ष देखो पाठ में || तेहिज ने नव वर्ष प्रभु । वर्ष नवम नुं देश ग्रह्यं ॥ देश ऊण आयू धणी । ए पिण गर्भ सहीत है ॥
जघन्य समय इक जाणवुं गो० !
Jain Education International
स० !
हिव परिहार कहिवाय हो स० !
४०. उत्कृष्टो देश ऊण जे गो० !
ए समय रही मृत्यु पाय हो स० !
ए ऊणों वर्ष गुणतीस हो स० ! विशुद्धपरिहार जगीस हो स० ! सोरठा
अद्ध
ऊण जे । ४१. उत्कृष्ट वर्ष गुणतीस, तेह देश कर पूर्व कह्य, कोड़ जगीस, का परिहारविशुद्ध अढ ॥ ४२. कोड़ पूर्व स्थितिवंत, साधिक अष्टज वर्ष नं । लियो चरण कर खंत, बीस वर्ष तेहने ४३. पूर्वाधीत कहीज, ते पिण गुरु आज्ञा तप परिहार वहीज, ऊण वर्ष
थया ।।
गुणतीस
*लय : आई हूं बेवा ओलम्भड़ा सासूजी
पूर्व कोड़ हवं तिको गो० !
थकी ।
इम ॥
३३. उनकोसे पुव्यकोडी ।
देणएहि नवह वाहि रुपिया
३५. जीवा णं भंते ! सिज्झमाणा कयरम्मि आउए सिति ?
गोवमा ! जगेणं सारे
( ओवाइयं सू. १८८ ) ३६-३८. उक्कोण देणएहिं नहि वाहि ऊणिया पुष्कोडी' ति यदुक्तं तद्गर्भसमवादारभ्यावसेयम्, अन्यथा जन्मदिनापेक्षयाऽष्टवर्षोनिकैव सा भवतीति, (बु. प. ९१७)
३९. एवं दोषावणिए वि परिहारविमुद्धिए जह एक्कं समयं
परिहारविद्धिए जहने एक समर्थ' ति मरणापेक्षमेतत्, ( वृ. प. ९१७ ) ४०. उक्कोसेणं देणएहि एकूण तोगाए बानिया पुष्कोडी |
४१-४४. 'उक्कोसेणं देसूणएहि ' ति अस्यायमर्थ:देशोननववर्षजन्मपर्यायेण केनापि पूर्वकोट्यायुपा प्रव्रज्या प्रतिपन्ना, तस्य च विंशतिवर्षप्रव्रज्यापर्यायस्य दृष्टिवादोऽनुज्ञातस्ततश्चासौ परिहारविशुद्धिक प्रतिपन्नः, तच्चाष्टादशमासमानमप्यविच्छिन्नतत्परिणामेन तेनाजन्म पालितमित्येवमे कोनत्रशद्वर्षोनां पूर्वकोटि तस्वादिति, (बृ. प. ९१७.९१८)
For Private & Personal Use Only
श० २५, उ० ७, ढा० ४५९
१९१
www.jainelibrary.org