SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 210
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४५. सुहमसंपराए जहा नियंठे। ४७. अहक्खाए जहा सामाइयसंजए। (श. २५१५३३) ४४. छ तस मास अठार, पिण अविछिन्न परिणाम करि । जीवै ज्यां लग सार, लै परिहारविशुद्ध जे ॥ वा०–'इहां कोइ पूछ परिहारविशुद्धिक चारित्र अठार मास - कह्य। अने एक भव में उत्कृष्ट तीन वार पिण आवतुं कह्य तो ए अठार मास रै लेखे तो देशूण कोड़ पूर्व तांइ ए चारित्र रहै, तिवारै तीन वार आवा रो नियम रह्यो नथी । अठारै मास रै लेखै घणी वार आयो जोइये, तेहनु उत्तर ए परिहारविशुद्धिक चारित्र छेदोपस्थापनिक में आवी परिहारविशुद्धिकपणुं अंगीकार कर तिवार तीन बार उत्कृष्ट हुवे। अनै ए परिहारविशुद्धिक अठार मास पर्छ छेदोपस्थापनिक में आव्यु नथी अन तेणे परिहारविशुद्धिक चारित्र नै अविछिन्न परिणा मेंज देशूणो कोड़ पूर्व ताइ रहै।' (ज. स ) ४५. *संपरायसूक्ष्म तिको गो०! निग्रंथ जेम सुदृष्ट हो स० ! समय एक हुवै जघन्य थी गो० ! ___अंतर्मुहुर्त उत्कृष्ट हो स० ! सोरठा ४६. ए दशमें गुणठाण, समय एक रहीने मुओ । जघन्य समय इक जाण, उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त अद्ध ॥ ४७. *यथाख्यात संजत तिको गो.! सामायिक जिम जोय हो स० ! समय एक हुवै जघन्य थी गो० ! समय रही मृत्यु होय हो स०! ४८. उत्कृष्टो देश ऊण जे गो०! पूर्व कोड़ अवलोय हो स० ! नव वर्षे करि ऊण जे गो० ! ___ अष्ट वर्ष जाझो होय हो स० ! ए एक वचन आश्री कह्यो। हिव बहुवचन आश्री कहै छ४९. बहुवचने सामायिका सा० ! हुवै काल थकी कितो काल हो ? नि ! जिन कहै सर्व काले हवै गो० ! विदेह शाश्वता न्हाल हो स० ! ५०. बहु वच छेदोपस्थापनी सा० ! प्रश्न कियां कहै स्वाम हो स० ! जघन्य थकी रहे एतलो गो०! वर्ष अढीसौ आम हो स. ! गीतकछंद ५१. उत्सप्पिणी धुर तीर्थंकर नै, तीर्थ ज्यां लग जाणिय । वर द्वितीय एह चरित्त है ते, विमल न्याय बखाणिय ।। ५२. फुन तास तीर्थ हुवै अछै ए, वर अढीसौ वास ही। इह कारणे ए जघन्य अद्धा, कालथीज प्रकाश ही। *लय : आई छू देवा ओलम्भड़ा सासूजी ४९. सामाइयसंजया णं भंते ! कालओ केवच्चिरं होंति? गोयमा ! सव्वद्धं । (श. २५२५३४) ५०. छेदोवट्ठावणिय संजया-पुच्छा। गोयमा! जहणेणं अड्ढाइज्जाई वाससयाई, ५१. तत्रोत्सप्पिण्यामादितीर्थकरस्य तीर्थ यावच्छेदोपस्थापनीयं भवतीति, (बृ. प. ९१८) ५२. तीथं च तस्य साढे द्वे वर्षशते भवतीत्यत उक्तं 'अड्ढा इज्जाई' इत्यादि, १९२ भगवती जोड़ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003623
Book TitleBhagavati Jod 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages498
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy