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परमसिरि चरिर
तृतीय संधि
२. विशेषणो श्लिष्ट छे, अने सुयदेवय ( श्रुतदेवता ) अने चंदमुत्ति ( चन्द्रमूर्ति) बने साथै घटे छे.
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३. अंवय - लुंवि [य] - हत्था ने बदले अंधय - लुंवि विहत्था एवो पाठ पण कल्पी शकाय . विहत्थ = 'अमुक वस्तुथी विशिष्ट ( युक्त ) हाथ.' आ पाठमां, पासेपासे आवता बे वि मांथी एक लेखन प्रमादथी रही गयो होवानी उपपत्ति पण आपी शकाय लुंबि (देशी नाममा ला
७-२८) ‘ऌम.’
भुवण-भाय (भुवलभागाः ) 'विश्वना विभागो'.
६. उन्निय (उन्नीत) 'बहार आवेला.' सरखावो उन्नेइ ३. ५९.
८. विहाइने बदले विहाय वांची दिसिविहाय - दिग्विभागाः एम घटावj. आधी प्रास पण निर्दोष बने छे.
किलिकिलियने समासना भाग तरीके नहीं, पण स्वतंत्र शब्द तरीके ( विधेय तरीके) गणवो.
९. विहाइने विभावयतिना अर्थमां लीधो ले. छुहा=सुधा 'वूनो.' सरखावो गुज. 'छो'. १४. पंचन्न पञ्चवर्ण. आवी रीते चार के वधारे अक्षरना शब्दमां संयुक्त व्यंजन पूर्वेनो व अपभ्रंशमां लुप्त थतो होवानां बीजां उदाहरणो : मच्छंधिणि ( मत्स्यवन्धिनी), आसन्ध ( अश्ववन्ध ) वगेरे.
१८. उत्तरार्धमा भाणु (भाजनम्) 'पात्र. '
२५. वरवसुहने बदले वरवसह - गंध ( वरषभगन्ध ) पांचो.
२६. राउसबई = राग + उत्सव + आनि. पण आम घटावतां उत्सव नपुंसकलिंगी गणनो पडे छे. ४८. आलिंगणि विहिँ वि पणडु सोउ एम पाठ सुधारवो.
५१-५२. ५१मी पंक्तिना अंत साथै साधु प्रत्येनी पद्मश्रीनी उक्ति पूरी थाय छे. ५२मी पंक्तिमां वलिमुह (वलिमुख) 'कागडो' एम पाठ अटकळी कागाने संबोधला शब्दो मधुरचायश्री शरू थता होवानुं गण्युं छे.
उरिउरेहि ए कुरकुरेहिँ 'करकर अवाजे बोल एसो कोई शब्द गूळमां होना संभव छे.
६३. जाउ ( जातम् ) 'पुत्रने. '
७५. अब्भमुक्कुर (अभ्रमुकुर) 'सूर्य . '
७२. उदयंगउ एम सुधारवाथी १६ मात्रा थई रहे छे.
८०. चिंत[वि] ने बदले चिंत[इ] वांचो.
८१. भयावण. भयावइ ए प्रेरक रूप परथी कर्तृवाचक प्रत्यय 'अण द्वारा भयावण सिद्ध थयो छे. 'दयामणं, ' 'बीहामणं' वगेरेतुं घडतर आ प्रकारनुं छे.
९५. भुयंग (भुजङ्ग ) श्रिष्ट छे : (१) उपपति, (२) साप.
११३. अह कालि अपूरह तुहु मरेहि आ प्रयोग अपभ्रंशमां तेमज जुनी गुजरातीमां खूब • जाणीतो छे.
१२७. संभालिउ ( संभालितः ) 'संभळाव्यं' एवो अर्थ कर्यो छे.
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