________________
टिप्पण
५९. निमूल 'निर्मूलन'ना अर्थमां अजाभ्यो शब्द छे.
६१. जाहि ने बदले जहिँ वांचतां मात्रादोष टळे छे अने अर्थ बेसे छे.
८०. वर - सिरिय नाहु एम जुदा शब्दो लेतां सिरिय षष्ठीनुं रूप गणी शकाय .
९१. समुह = संमुह ( संमुख) 'सामुं.'
९८. जासुने बदले तासु होय तो ज अर्थ बेसे छे.
९९. मुहुने बदले महु वांच.
१०९. जुयं तह ए मळे जुयन्नह 'जुवाननी' एनो भ्रष्ट पाठ छे एम धारीने अर्थ कर्यो छे. ११७-११८. सुणहि कुमार समुद्ददत्त एने बच्चे मूकेला parenthetic वाक्य तरीके लेवानुं छे. वाक्यरचना आ प्रमाणे छे : कुमार समुद्ददत्त, सुणहि । जह पइदियहु सणेहु विवइ, तह स- कुसल -वत्त अणुदियहु कहावहि ।
११९. वुच्चहिं ए मूळ पाठ ज बरोबर जे. वुच्चाइँ एम जे सुधार्युं छे ते बिनजरूरी छे.
१२०. सुद्धसामी ए. भ्रष्ट पाउने बदले मूळमां सुड्डु मामि होय. सुड्डु ए साणद्धइ साथै लई शकाय. मामि सखीने संबोधवामां वपराय छे.
४५
१२५. मूळ पाठ निवन्न ( - निषण्ण 'बेठी, आडी पडी' ) बरोबर छे, निविन्न ए सुधारो
अनावश्यक.
१२८. मूळमां डालिचुक्क छे, पण फुल्ल-चुक्कनो प्रास शक्य नधी, एटले भुल्ल पाटनी कल्पना करी छे. मूळ भुल्लनो चुक्क एवो कोईए हांसियामां अर्थ लख्यो होय अने पछी भुल्लनु स्थान चुक्क ले ए समजी शकाय तेनुं छे.
१३३. भायइ = भावइ=भावयति.
१३८. तुसार ( तुषार ) = 'कपूर'. एटले घणतुसार- 'कपूरनो घाटो लेप' एवो अर्थ कर्यो छे. १४०. अवलोयहिने स्थाने अवलोयइ वांच.
१४९. पाठ भ्रष्ट छे. भग्गंगुलि ने स्थाने मूळमां भुग्गंगुलि (भुग्नाङ्गुलि ) ' वक्र करेली आंगळी वाळो' होय.
९४६. जलण- समाण फुलिंग कर एम छूटं पाडी वांचवं. जलण- समाण ए अहीं कामदेवनुं संबोधन छे.
१५१. कुंजरवरने बदले कुंजरकर जोईए.
१६१. अवहियमणि कन्न मुहुत्त देह ए कविए श्रोताओने संबोधेलं वाक्य छे- हे श्रोताजनो, घडीक एकचित्त थई तमे सांभळो, कुमारनी अवस्था पण केवी हती ए हुं हवे वर्णयुं छं. १९७. स्पष्ट अर्थ घटावी शकातो नथी.
२०९-२१०. मउड शब्द त्रण वार आवे छे ए हकीकत अहीं पाठ भ्रष्ट होवानी सूचक छे. २१४. तिप्पसत्थुने बदले विष्प - सत्थु (विप्रसार्थम्) वांचवं.
२१७. संजमियने बदले संजणिय वांचवं.
२१८. उत्तरार्धमा एक मात्रा ओछी छे.
२५०. संदर्भने आधारे, अने प्रस्तुत काव्यमां ज अन्यत्र आवता उल्लेखोने आधारे धवलच्छि ( धवलाक्षी ) = 'लक्ष्मी' अने सुवच्छ (सुवक्षस् ? ) - 'विष्णु' एम अर्थ कर्यो छे. २५२. चंदलेह ( चन्द्रलेखा ) = शशिलेखा.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org