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________________ पउमसिरि चरिउ १७५. विगयहारनो कुंदसाह साथे प्रास मळतो नथी. विगयराह पाठ होय तो आ दोष दूर थाय. राह 'शोभित' 'सुंदर' अर्थमां कोशमां आपेलो छे. राह, राहा (स्त्री.) 'शोभा' ए अर्थमां लई शकाय. १८३. तइए त्वया गणी अर्थ कर्यो छे. १८६. पाठ शुद्ध नथी लागतो. जाणुवमु अने थीओ शंकास्पद छे. १८७. एहउँनो संबंध धम्मोवएसु साथे होय एम लागे छे. १८९. उत्तरार्ध अस्पष्ट. अर्थ अटकळे कर्यो छे. १९६. विन्नवइ ने स्थाने चिंतवइ जोईए. १९८. हार-दोर. आवा अपूर्ण प्रास आ काव्यमा ध्यान खेंचे छे : दोर-चीर २. १३०, सील-कुसल ४-३७; समुद्द-अरविंद ४-३९, वगेरे. २०७. अवयरेवि='परिचर्या करूं छु' ए अर्थ अटकळे कर्यो छे. उत्तरार्धमा जंमह वि न विप्पिउ संभरेवि (=संस्मरामि) एम पाठ सुधारवो. २०८. प्रिय, अने आगळ उपर २. ३७ मां रकार (अधोरेफ) जळवाई रह्यो छे. सरखावो सिद्ध हे म ४-४-३९८ 'अपभ्रंशे संयोगादधो वर्तमानो रेफो लुग वा भवति.' २१३. भयंकराल. सामान्य रीते आल प्रत्यय मत्वीय छे, पण अहीं मात्र स्वार्थिक छे. २१६. पूर्वार्धमां एक मात्रा तटे छे. २१७. चोरी 'चोरी.' संस्कृत कोशोमां चोरिका 'चोरी' अर्थमा गोंधेलो छे. २१८. वड्. सरखावो सिद्ध हे म ८-४-४२२ (१३). २२७. उज्झिय इ (एव) एम जुदा बे शब्दो गणवा, जेथी नपुंसकलिंगी विशेषण (उज्झियह) पुंल्लिंग विशेष्य(भोग)ने लगाडवानो दोष निवारी शकाय. २३१. जायावणाउने स्थाने आयावणाउ (आतापनाः) वांचg. २३४. पालेइने स्थाने पालइ वांचतां वधारेनी मात्रा दूर थाय छे ने छंदनुं माप जळवाई रहे छे. द्वितीय संधि ७. अहीं उसहदत्तु (उसहदत्त मुद्रणदोष छे) (वृषभदत्तः) छे, ज्यारे ४. ११ मां उय हिदउ के (लेखनपद्धति अने प्रासने लक्षमा लेता) उयहिदत्तु (उदधिदत्तः) मळे छे. समुद्रदत्तने नजरमा लेतां उदधिदत्त ज योग्य लागे छे. २१. सोमणि-सोमण- सप्तमी एकवचन. सोमण-सोवण (देशी नाम मा ला ८, ५८)= वासगृह, शय्यागृह, रतिमंदिर. एटले आखी पंक्तिनो अर्थ आम थशे : 'स्तनभारवाळी अप्सराओ साथे कांचन अने मणि (वडे निर्मित) वासगृहमा भोग भोगवीने'. भाषांतरमां आ प्रमाणे सुधारो करी लेवो. ३३. रत्तुप्पल वांचq. ३५. लीलावहूय जोई ए. ३६. वंस अने गुण क्लिष्ट छे ने पद्मश्री तेम ज चापयष्टि बनेने लागु पडे छे. ४६. पूर्वार्धमा हार-भार. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002783
Book TitlePaumsiri Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhahil Kavi, Jinvijay
PublisherSinghi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
Publication Year1948
Total Pages124
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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