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________________ टिप्पण ४७ चतुर्थ संधि १. सिंचंती-सिञ्चती (सिच्यमाना) लई अर्थ घटाववो. २. तुम्हं करतां तुम्हह एम पाठशोधन करवू. ९. णयणियाउ वांचो. ससि ने बदले सम पाठ कल्पता अर्थ घटे छे. २५. पेसणह चुक्क. सोंपेलं कार्य अगधार्या संकटथी अणसिध्युं रहे ( अने क्वचित् 'भरण पाम्यो') ए अर्थमां आ अपभ्रंशनो रूढ प्रयोग छे. ३५. अतरंडउ. मूळमां बन्ने पंक्तिना अंते तरंडउँ छे. एनो अर्थ प्रस्तुत संदर्भमा बेसतो नथी, एटले अतरंडउँ अने करंडउ एवो पाठ कल्प्यो छे. परंतु स्पष्ट अर्थावबोध थतो नथी. ४१. गय-मय-वियार-(१) गत-मद-विकार, (२) गज-मद-विचार के गज मृग-विचार. ४७. वि दिन्नु एम जुदा पाडवा. ५४. भग्गु 'भाग्य'. ५५. सुहि-सुखेन. ६०. सँवारवि (समारचयामि). सरखावो सिद्ध हे म ४. ६५. १०८. पूकरेण मूळ पाठ किकरण होय. १२७. जे ने बदले में. १४०-१४१. पादनोंधमा आप्यु छे तेम तेण वि कमेण निग्गल अने उत्तरइ एम पाठ होय. १४२. आ पंक्ति आ संदर्भमां बेसती नथी. ए फरी आगळ उपर १८१मा पुनरुक्त थाय छे. त्या ते बरोबर छे. अहीं भूलथी आवी गई होवानुं लागे छे. १४६. उन्नउ ने बदले उन्नियउ (ऊंचो थयेलो) होवानो पण संभव. १८१. आनी आ पंक्ति आगळ आवी गई छे (१४२), १८७. काव्यनो अहीं अंत आवे छे. १६मुं कडवक प्रशस्तिनुं छे. १९८. सूराइंहिं मूळे सूराईहि होय. संभवित छे के ए कविनी मातानुं नाम होय. दिव्वदिहि छटा शब्द तरीके लेवो. * * Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002783
Book TitlePaumsiri Chariu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhahil Kavi, Jinvijay
PublisherSinghi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
Publication Year1948
Total Pages124
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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