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________________ भाषाटीकासमेतः। (९३) निःसंशयेन भवति प्रतिबन्धशून्यो विक्षेपणं नहि तदा यदि चेन्मृषार्थे । सम्यग्विवेकः स्फुटबोधजन्यो विभज्य दृग्दृश्यपदार्थतत्त्वम् । छिनत्ति मायाकृतमोहबन्धं यस्माद्विमुक्तस्य पुनर्न संसृतिः॥३४६॥ यदि मिथ्यावस्तुओंसे विक्षेपशक्तिका नाशहोय तो स्पष्ट बोधजन्य प्रतिबन्धकसे रहित निश्चय समीचीन विवेक उत्पन्न होगा । विवेकयुक्त जो पुरुष द्रष्टा और दृश्यपदार्थों के विभागकर मायाकृत मोहजालका नाश करता है जिस मोहजाल से मुक्तहोनेपर फिर संसारकी संभावना नहीं होती ॥ ३४६ ॥ परावरैकत्वविवेकवह्निर्दहत्यविद्यागहनं ह्यशेषम् । किं स्यात्पुनः संसरणस्य बीजमद्वैतभावं समुपेयुषोऽस्य ॥ ३४७॥ तत्त्वमसि आदि महावाक्योंसे जीव ब्रह्मका एकत्व विचाररूप जो आग्नहै सो अविद्यारूप महावनको निर्मूल भस्म करदेताहै जब निर्मूल अविद्याका नाशहुआ तो अद्वैत भावमें प्राप्त मनुष्यका संसार प्राप्त होनेमें कुछ भी कारण नहीं रहताहै ॥ ३४७ ॥ आवरणस्य निवृत्तिर्भवति च सम्यक् पदार्थदर्शनतः । मिथ्याज्ञानविनाशस्तद्विक्षेपजनितदुःखनिवृत्तिः ॥ ३४८॥ सम्यक पदार्थ जो आत्मवस्तुहै उसके दर्शन अर्थात् विचारहोनेसे आवरण शक्तिकी निवृत्ति होती है आवरणशक्तिकी निवृत्ति होनेसे मिथ्याज्ञानका नाश होताहै मिथ्याज्ञानके नष्ट होनेपर विक्षेपशक्तिसे जायमान सम्पूर्ण दुःख निवृत्तिको प्राप्त होते हैं ॥ ३४८ ॥ एतत्रितयं दृष्टं सम्यग्रज्जुस्वरूपविज्ञानात् । तस्माद्धि वस्तुतत्वं ज्ञातव्यं बन्धमुक्तये विदुषा ॥ ३४९ ॥
SR No.002468
Book TitleVivek Chudamani Bhasha Tika Samet
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Sharma
PublisherChandrashekhar Sharma
Publication Year
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, G000, & G999
File Size12 MB
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