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________________ (८८) विवेकचूडामणिः । सुख पाता है शरीर पात होनेपर भी केवल ब्रह्म होता है जो मनुष्य यत्किञ्चित् भेदबुद्धि रखता है वह भयको प्राप्त होता है ऐसा यजुर्वेदकी श्रुतियाँ कहती हैं ॥ ३३० ॥ यदा यदा वापि विपश्विदेष ब्रह्मण्यनन्तेऽप्यणुमात्रभेदम् । पश्यत्यथामुष्य भयं तदैव यद्वीक्षितं भिन्नतया प्रमादात् ।। ३३१ ॥ जो विद्वान् अनन्त परब्रह्म में किंचित् मात्र भी भेदको देखता है उसी भेदबुद्धिसे उस मनुष्यको भय प्राप्त होता है क्योंकि प्रमादही से आत्मामें भेद देख पडता है इस लिये प्रमादसे सदा सावधान होना चाहिये ॥ ३३९ ॥ श्रुतिस्मृतिन्यायशतैर्निषिद्धे दृश्येन यः स्वा त्ममतिं करोति । उपैति दुःखोपरि दुःखजातं निषिद्धकर्त्ता स मलिम्लुचो यथा ॥ ३३२ ॥ श्रुति और स्मृति और सैंकडों युक्तियोंसे निषिद्ध जो यह दृश्य संसार है इस संसार में जो आत्म बुद्धि करता है वह निषिद्धकर्मकर्त्ता म्लेच्छों के समान परम दुःखको प्राप्त होता है ॥ ३३२ ॥ सत्याभिसंधानरतो विमुक्तो महत्त्वमात्मीयमुपैति नित्यम् । मिथ्याभिसंधानरतंतु नश्येदृष्टं यदेतद्यदचौर चौरयोः ॥ ३३३ ॥ अद्वितीय ब्रह्मरूप सत्यवस्तुके विचारनेमें जो मनुष्य अनुरक्त रहता है वह जीवन्मुक्त होकर महत्व आत्मीय पदको सदा प्राप्त होता है जो मिथ्या वस्तु शरीर आदिका संग्रह में अनुरक्त है उस मनुष्यको यही दृष्टसंसारवस्तु नाशको प्राप्त कर देता है जैसे अच्छे काम करनेवाला साधुजन उत्तम पदको पाता है नीचकर्म करनेवाला चोर दण्ड पाकर परम दुःख पाता है ।। ३३३ ॥
SR No.002468
Book TitleVivek Chudamani Bhasha Tika Samet
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Sharma
PublisherChandrashekhar Sharma
Publication Year
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, G000, & G999
File Size12 MB
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