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________________ भाषाटीकासमेतः। (८७) विषयेष्वाविशेञ्चेतः सङ्कल्पयति तद्गुणान्। सम्यक्संकल्पनात्कामः कामारपुंसः प्रवर्तनम् ३२७॥ जब चित्त, विषयोंमें प्रवेश करताहै तो विषयके गुणोंको संबप अर्थात् विचार किया करताहै । सदा संकल्प होनेसे उन विषयोंकी चाहना होतीहै चाहना होनेसे विषयों में पुरुषकी प्रवृत्ति होतीहै ३२७॥ अतः प्रमादान परोस्ति मृत्युविवेकिनो ब्रह्मविदः समाधौ । समाहितः सिद्धिमुपैति सम्यक्समाहितात्मा भव सावधानः ॥३२८॥ श्रीस्वामीजी शिष्यको शिक्षा देते हैं कि हे शिष्य ! इसलिये विवेकी ब्रह्मज्ञानी पुरुषको समाधिकालमें प्रमाद होना इससे अधिक दूसरा कोई मृत्यु नहीं है क्योंकि जो पुरुष समाधिमें सदा स्थिर रहता है वह आत्मलाभरू प सिद्धिको प्राप्त होता है इसहेतु तुम भी सावधान होकर चित्त स्थिर करो ॥२८॥ ततः स्वरूपविभ्रंशो विभ्रष्टस्तु पतत्यवः। पतितस्य विना नाशं पुनर्नारोह ईक्ष्यते ॥३२९॥ समाधिकालमें प्रमाद होने पर आत्मस्वरूपसे अलग होना पड़ता है जो आत्मस्वरूपसे विभ्रष्ट हुआ उसका अधःपतन होता है अधःपतित मनुष्य नाशको प्राप्त हुये विना चाहे कि फिर उसका चित्त आत्मस्वरूपमें आरोहण करे ऐसा कभी नहीं होता ॥ ३२९ ॥ संकल्पं वर्जयेत्तस्मात्सर्वानर्थस्य कारणम् । जीवतो यस्य कैवल्यं विदेहे च स केवलः । यत्किञ्चित्पश्यतो भेदं भयं ब्रूते यजुःश्रुतिः॥३३०॥ इसलिये सम्पूर्ण अनर्थीका कारण संकल्पको सर्वथा त्याग करनाही योग्य है जिसने संकल्पका त्याग किया वह जीतेमें कैवल्य
SR No.002468
Book TitleVivek Chudamani Bhasha Tika Samet
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Sharma
PublisherChandrashekhar Sharma
Publication Year
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, G000, & G999
File Size12 MB
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