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________________ भाषाटीकासमेतः। (८५) क्रियाका नाशहोनेसे चिन्ताका नाश होता है चिन्ताके नाशहोनेसे वासनाका क्षय होता है वासनाका क्षय होना यही मोक्ष है जिसके वासनाका क्षय हुआ उस मनुष्यको समझना कि यह जीवन्मुक्त है । सद्धासनास्फूर्ति विजृम्भणे सतीत्यसौ विलीनाप्यहमादिवासना । अतिप्रकृष्टाप्यरुणप्रभायां विलीयते साधु यथा तमिस्रा ॥३१९॥ . जैसे अत्यंत प्रकृष्ट अन्धकार युक्त रात्रि सूर्यकी प्रभाके उदय होतेही नष्ट होती है तैसे सत् ब्रह्म वासनाकी स्फूर्ति वढने पर अहंकारकी यह वासना नष्ट हो जाती है । ३१९ ॥ तमस्तमः कार्य्यमनर्थजालं न दृश्यते सत्युदिते दिनेशे । तथा द्वयानन्द रसानुभूतौ नैवास्ति बन्धो न च दुःखगन्धः ॥ ३२० ॥ जैसे सूर्यके उदय होनेसे तप और अनर्थका समूह तमका कार्य ये सब कहीं नहीं दीखते तैसे अद्वितीय आनन्दमय रसके अनुभव होनेसे न संसाररूप बन्ध रहता है न दुःखका गन्ध रहताहै ॥३२०॥ दृश्यं प्रतीतं प्रविलापयन्सन् सन्मात्रमानन्दघनं विभावयन् । समाहितः सन्बहिरन्तरं वा कालं नयेथाः सति कर्मबन्धे ॥ ३२१ ॥ हे शिष्य यदि तुम कर्मबन्धमें फँसेहो तो दृश्य प्रतीयमान इस जगतको मिथ्या समझके लय करते हुए और सन्मात्र आनन्द घन आत्माको विचारते हुए बाह्य भीतरसे समाहित होकर काल व्यतीत करो ॥ ३२१॥ प्रमादो ब्रह्मनिष्ठायां न कर्त्तव्यः कदाचन । प्रमादो मृत्युरित्याह भगवान्ब्रह्मणः सुतः ॥ ३२२ ॥
SR No.002468
Book TitleVivek Chudamani Bhasha Tika Samet
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Sharma
PublisherChandrashekhar Sharma
Publication Year
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, G000, & G999
File Size12 MB
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