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________________ ( ८४ ) विवेकचूडामणिः । कार्य बढने से बीजकभी वृद्धि होती है और कार्य नाश होनेसे बीजकभी नाश होता है इस लिये काय्यैका नाश करना चाहिये ३१३ वासना वृद्धितः कार्य्यं कार्य्यवृद्धया च वासनाः । वर्द्धते सर्वथा पुंसः संसारो न निवर्त्तते ॥ ३१४ ॥ वासना के बढ़ने से कार्य बढता है और कार्य बढने से वासना बढती है इस लिये पुरुषको संसार निवृत्त नहीं होता || ३१४ ॥ संसारबन्धविच्छयै तद् द्वयं प्रदहेद्यतिः । वासनावृद्धिरेताभ्यां चिन्तया क्रियया बहिः ॥ ३१५ ॥ संसारबन्धसे विमुक्त होनेके लिये कार्य और वासना इन दोनोंको योगी नाश करे । और वासनाकी वृद्धि तो विषयोंकी चिन्ता करने से और बाह्यक्रिया करने से होती है क्योंकि विषयचिन्ता छूटने से वासना नष्ट होती है वासना नाश होनेसे फिर संसार नहीं होता || ३१५ ।। ताभ्यां प्रवर्द्धमाना सा सूते संसारमात्मनः । त्रयाणां च क्षयोपायः सर्वावस्थासु सर्वदा ॥ ३१६ ॥ विषयकी चिन्ता और बाह्यक्रिया इन दोनोंसे बढ़ी हुई वासना आत्मामें संसारको उत्पन्न करती है इस लिये विषयचिन्ता और बाह्यक्रिया और वासना इन तीनोंको क्षय होनेका उपाय सब कालमें और सब अवस्था में करना चाहिये ।। ३१६ ॥ सर्वत्र सर्वतः सर्वं ब्रह्ममात्रावलोकनैः । सद्भाववासनादाढर्यात्तत्त्रयं लयमश्नुते ॥ ३१७ ॥ सब कालमें सब वस्तुओं में सबसे सबको ब्रह्ममय दखिनेसे और उस ब्रह्ममय वासना दृढ होनेसे विषयचिन्ता और बाह्यकार्य और वासना ये तीनों लयको प्राप्त होते हैं ।। ३१७ ।। क्रियानाशे भवेच्चिन्ता नाशोऽस्माद्वासनाक्षयः । वासनाप्रक्षयो मोक्षः सा जीवन्मुक्तिरिष्यते ॥ ३१८ ॥
SR No.002468
Book TitleVivek Chudamani Bhasha Tika Samet
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Sharma
PublisherChandrashekhar Sharma
Publication Year
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, G000, & G999
File Size12 MB
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