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________________ भाषाटीकासमेतः। चेतसा क्षणम् । संजीव्य विक्षेपशतं करोति नभस्वता प्रावृषि वारिदो यथा ॥ ३१ ॥ ऐसा प्रबल यह अहंकार है कि समूल नाश होने पर भी थोरा चित्तका संघर्ष होनेसे क्षण मात्रम संजीवित होकर मैकडों निक्षेपोंको बढाता है जैसे वर्षाकालमें वायुका संघर्ष होनेमे थोडाभी मेघ आकाशमें नाना तरहकी आकृतिका दीखता है तैसे चित्त के संघर्षसे अहंकार भी नाना तरहकी सृष्टिको विस्तार करता है ॥ ३१० ॥ निगृह्य शत्रोरहमोऽवकाशः कचिन्न देयो विपयानुचिन्तया। स एव संजीवनहेतुरस्य प्रक्षीणजम्बीरतरोरिवाम्बु ॥३१॥ जैसे जम्बीरके वृक्ष काटने पर वर्षा समयमें जल संसर्ग होनेसे अंकुरित होकर फिर वह वृक्ष बढ जाता है तसे अहंकाररूप शत्रुको नाश करनेपर भी विषयका अनुचिन्तनसे समय पाकर फिर वह अहं. कार संजीवित होता है क्योंकि अहंकारके उत्पन्न होनेमें विषयचिन्ताही कारण है इस लिये अहंकारके नाश होने पर फिर विषयचिन्ता कभी न करना ॥ ३११ ।। देहात्मना संस्थित एव कामी विलक्षणः काम- . यिता कथं स्यात् । अतोऽर्थसन्धानपरत्वमेव भेदप्रसत्त्या भवबन्धहेतुः ॥ ३१२॥ देहमें आत्मबुद्धिसे वर्तमान जो कामी पुरुष वह विलक्षण कामयिता कैसे होगा इसलिये भेद बुद्धिसे विषयका अनुचिन्तनमें तत्पर होना भवबन्धमें कारण है ॥ ३१२ ॥ कार्यप्रवर्द्धनादीजप्रवृद्धिः परिदृश्यते । कार्य्यनाशाद्वीजनाशस्तस्मात्कार्यं निरोधयेत: १३ नाम
SR No.002468
Book TitleVivek Chudamani Bhasha Tika Samet
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Sharma
PublisherChandrashekhar Sharma
Publication Year
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, G000, & G999
File Size12 MB
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