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________________ भाषाटीकासमेतः। (७७) लय होय तबतक सावधान होकर अपनी युक्तियोंसे आत्माका अध्यासको दूर करो ॥ २८५ ॥ प्रतीतिर्जीवजगतोः स्वप्नवद्भाति यावता। तावनिरन्तरं विद्वन् स्वाध्यासापनयं कुरु ॥२८६॥ हे विद्वन् ! जबतक जीव और जगतकी प्रतीति स्वमवत् दीखे तबतक निरंतर आत्मविषयक अध्यासको दूर करो ॥ २८६ ॥ निद्राया लोकवार्त्तायाः शब्दादेरपि विस्मृतेः। कचित्रावसरं दत्त्वा चिंतयात्मानमात्मनि ॥२८७॥ निद्रा और लोककी वार्ता और शब्द स्पर्श आदि विषय इन सबका विस्मरण होनेपर कहीं भी अवसर न देकर अर्थात् सर्वथा विषयोंको विस्मरण कर आत्माको अपने में चिंतन करो ॥२८७ ॥ मातापित्रोर्मलोद्भूतं मलमांसमयं वपुः । त्यत्वा चाण्डालवदूरं ब्रह्मीभूय कृती भव ॥२८८॥ मातापिताके मलसे उत्पन्न और मलमांससे भरे इस शरीरको चाण्डालके नाई दूरहीसे त्यागकर ब्रह्ममय होकर कृतकृत्य होजावो२८८॥ घटाकाशं महाकाश इवात्मानं परात्मनि । विलाप्यारखण्डभावेन तृष्णीं भव सदा मुने॥२८९॥ हे मुने ! जैसे घटके नाश होनेपर घटका आकाश महाआकाशमें लीन होता है तैसे जीवात्माको परमात्मामें लय कर अखण्डस्वरूप होकर सदा मौन धारण करो ॥ २८९ ॥ स्वप्रकाशमधिष्ठानं स्वयं भूय सदात्मना। ब्रह्माण्डमपि पिण्डाण्डं त्यज्यतां मलभाण्डवत् २९० स्वयं प्रकाशस्वरूप जो जगतका अधिष्ठान परब्रह्म है तद्प स्वयं होकर सम्पूर्ण ब्रह्माण्डको मलसे भरा भाण्ड की नाई त्याग करो२९०
SR No.002468
Book TitleVivek Chudamani Bhasha Tika Samet
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Sharma
PublisherChandrashekhar Sharma
Publication Year
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, G000, & G999
File Size12 MB
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