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________________ भाषाटीकासमेतः । (६५) परमात्माकी एकता सिद्ध होती हैं इसीका नाम भागत्याग लक्षणा कही जाती है || २४३ ॥ ऐक्यं तयोर्लक्षितयोर्न वाच्ययोर्निगद्यतेऽन्योऽन्यविरुद्धधम्मणोः । खद्योतभान्वोरिव राजभृत्ययोः कूपाम्बुराश्योः परमाणुमेवः ॥ २४४ ॥ जैसे अमिमें अच्छे तपायाहुआ लोहासे अलग अग्निका भाग नहीं मालूम होता है तैसे अज्ञानकी वृत्तिसे छिपाहुआ आत्माका जबतक अलग विवेक नहीं होता तबतक सर्वज्ञत्वविशिष्ट ईश्वर और अल्पज्ञत्वविशिष्ट ईश्वर 'तत्त्वमसि' इस महावाक्य का वाच्य अर्थ होता है जब कि ज्ञानवृत्तिसे आत्माको अलग विवेक होता है तो वहीं आत्मा सर्वज्ञत्व और अल्पज्ञत्वरूप विरुद्ध भागको त्याग करनेसें शुद्ध चैतन्यरूप लक्षित अर्थ होता है इसकारण शुद्ध चैतन्य 'तत्त्वमसि' इस महावाक्यका लक्ष्य अर्थ है यही विरुद्ध अंशसे रहित तत्पदका और त्वंपदका जो लक्षित अर्थ शुद्धचैतन्य है इन्हीं दोनों में अभेदबोध होनेसे एकत्वज्ञान होता है और वाच्य अर्थ जो है सर्वज्ञ त्वविशिष्ट ईश्वर व अल्पज्ञत्व विशिष्ट ईश्वर इन दोनोंमें एकता नहीं होती है क्योंकि ये दोनों खद्योत और सूर्य्यके सदृश राजा व राजभृत्य कूप व महासरोवर, परमाणु व सुमेरु इन सबके सदृश परस्पर विरुद्धधर्मयुक्त हैं ॥ २४४ ॥ तयोर्विरोधोऽयमुपाधिकल्पितो न वास्तवः कश्चिदुपाधिरेषः । ईशस्य माया महदादिकारणं जीवस्य कार्यं शृणु पञ्चकोशम् ॥ २४५ ॥ जीवात्मा और परमात्माका जो अल्पज्ञत्व सर्वज्ञत्व आदि उपाधि हैं। सो सब कल्पित ह वास्तविक यह कोई उपाधि नहीं है माया और महत्तत्त्व आदि ईश्वरका कारण है और अन्नमय आदि पश्वकोश जविका कारण हैं ॥ २४५ ॥
SR No.002468
Book TitleVivek Chudamani Bhasha Tika Samet
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Sharma
PublisherChandrashekhar Sharma
Publication Year
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, G000, & G999
File Size12 MB
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