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भाषाटीकासमेतः ।
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इसकारण मोक्षार्थी पुरुषोंको प्रयत्नसे प्रथम मनहीका शोधन कर ना योग्य है जब मन विशुद्ध होगा तो मुक्ति हस्तामलक समान हो जायगी ॥ १८४ ॥
मोक्षकशक्त्या विषयेषु रागं निर्मूल्य संन्यस्य च सर्वकर्म । सच्छ्रद्रया यः श्रवणादिनिष्ठो रजःस्वभावं स धुनोति बुद्धेः ॥ १८५ ॥
प्रबल मोक्षकी शक्तिसे जो पुरुष विषय प्रीतिको निर्मूल नाश कर और सब काम्य कर्मोंको त्यागकर सम्यक् श्रद्धा से श्रवण मनन आदि उपायमें युक्त होता है वही मनुष्य बुद्धिसे रजोगुण स्वभावको दूर करता है ।। १८५ ॥
मनोमयो नापि भवेत्परात्मा ह्याद्यन्तवत्त्वात्परिणामभावात् । दुःखात्मकत्वाद्विषयत्वहेतोर्द्रष्टा हि दृश्यात्मतया न दृष्टः ॥ १८६ ॥
मनोमयकोश भी परम आत्मा नहीं है क्योंकिं मनोमयकोश उत्पत्ति विनाशयुक्त है और वृद्धि क्षयको भी प्राप्त होता है और दुःखात्मक हैं विषयोंका कारण है आत्मा तो आदि अन्तसे रहित उत्पत्ति विनाश रहित सुखात्मक विषयातिरिक्त सबका द्रष्टा है जो द्रष्टा होता है वह दृश्य होकर नहीं दीखता इसलिये मनोमयकोश भी आत्मा नहीं है ॥ १८६ ॥
बुद्धिर्बुद्धीन्द्रियैः सार्द्धं सवृत्तिः कर्तृलक्षणः । विज्ञानमयकोशः स्यात्पुंसः संसारकारणम् ॥ १८७॥
पंचज्ञानेन्द्रियसहित और अपनी वृत्तिसंयुक्त जो बुद्धि है सोई कर्तृत्वयुक्त विज्ञानमयकोश होती है जिससे आत्मामें भी उत्पत्ति विनाशरूप संसारकी संभावना होती है ॥ १८७ ॥