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भाषाटीकासमेतः ।
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मन विषय में विषसमान विरसत्ताको प्राप्त कर उस बन्धसे पुरुषको बचाता है || १७६ ॥
तस्मान्मनः कारणमस्य जन्तोर्बन्धस्य मोक्षस्य च वा विधाने । बन्धस्य हेतुर्मलिनं रजोगुणैमोंक्षस्य शुद्धं विरजस्तमस्कम् ॥ १७७ ॥
मनुष्योंके बन्ध और मोक्ष दोनोंके विधानमें आदिकारण मनहीं है रजोगुण के योगसे मलिन होकर मन बन्धका कारण होता है और रजोगुण तमोगुणसे रहित शुद्धसत्त्वप्रधान मन पुरुषके मोक्षमें कारण होता है ॥ ९७७ ॥
विवेकवैराग्यगुणातिरेकाच्छुद्धत्वमासाद्य मनोविमुक्तये | भवत्यतो बुद्धिमतो मुमुक्षोस्ताभ्यां भवितव्यमये ॥ १७८ ॥
विवेक और वैराग्य के गुण बढनेसे मन शुद्धताको प्राप्त होकर मोक्षका कारण होता है इसलिये बुद्धिमान मुमुक्षु पुरुषोंको प्रथम विवेक और वैराग्य करना योग्य है ।। १७८ ॥
मनो नाम महाव्यात्रो विषयारण्यभूमिषु ।
चरत्यत्र न गच्छन्तु साधवो ये मुमुक्षवः ॥ १७९॥ विषयरूप अरण्य भूमिमें मननामक एक महाव्याघ्र सदा वर्त्तमान रहता है इसलिये समीचीन मुमुक्षु पुरुषको विषयरूप अरण्यभूमिमें कभी जाना योग्य नहीं है ॥ १७९ ॥
मनः प्रसूते विषयानशेषान्स्थूलात्मना सूक्ष्मतया च भोक्तुः । शरीरवर्णाश्रमजातिभेदान्गणक्रिया हेतुफलानि नित्यम् ॥ १८० ॥