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________________ भाषाटीकासमेतः। (४५) वायुका विकार प्राणमय कोश है वायुके सदृश अन्तर्बाह्य गमन आगमन करता है और कभी कोई इष्ट अनिष्ट और अपना पराया कुछ नहीं जानता है इसलिये सदा परतंत्र जो प्राणमयकोश सो आत्मा नहीं है ॥ १६९॥ .. ज्ञानेन्द्रियाणि च मनश्च मनोमयः स्यात्कोशो ममाहमिति वस्तु विकल्पहेतुः। संज्ञादिभेदकलना कलितो बलीयांस्तत्पूर्वकोशमभिपूर्यविजृम्भते यः॥ श्रोत्र आदि पांच ज्ञानेन्द्रिय और मन ये सब मिलके ममता अहंकार इस वस्तुका विकल्पके कारण और नाना प्रकारकी सम्भावनासे शोभित प्राणमय कोशको परिपूर्णकर यह जो मनोमय कोश होताहै प्रबल वृद्धिको प्राप्त होता है ॥ १७० ॥ पञ्चेन्द्रियैः पञ्चभिरेव होतृभिः प्रचीयमानो विषयाज्यधारया । जाज्वल्यमानो बहुवासनेन्धनैर्मनोमयानिर्दहति प्रपञ्चम् ॥ १७१ ॥ यह मनोमय कोशरूप अग्नि पञ्चज्ञानेन्द्रियरूप पांच होतासे संचित और विषयरूप घृतधारासे और अनेक जन्मके वासनारूप इन्धनसे अतिशय प्रज्वलित होकर नानाप्रकारके महाप्रपञ्चको प्राप्त करता है ॥ १७१॥ नास्त्यविद्या मनसोऽतिरिक्ता मनो ह्यविद्या भवबन्धहेतुः । तस्मिन्विनष्टे सकलं विनष्टं विजृम्भितेऽस्मिन्सकलं विजृम्भते ॥ १७२ ॥ मनसे अतिरिक्त दूसरी अविद्या नहीं है मनरूप अज्ञान संसार बन्धका कारण है मनका तरंग नष्ट होनेसे सकल प्रपश्च नष्ट होता है और मनके बढनेसे सकल प्रपंच बढता है ॥ १७२ ॥
SR No.002468
Book TitleVivek Chudamani Bhasha Tika Samet
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Sharma
PublisherChandrashekhar Sharma
Publication Year
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, G000, & G999
File Size12 MB
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