________________
भाषाटीकासमेतः। (४३) त्वचा मांस मज्जा अस्थि पुरीषका समूह इस देहमें जो अहं बुद्धि करता है वह आतमूढ है जो विचारवान हैं वह आत्मरूप परमार्थवेत्ता आत्माको देहसे विलक्षण जानते हैं ॥ १६२॥ देहोऽहमित्येव जडस्य बुद्धिदेहे च जीवे विदुषस्त्वहंधीः । विवेकविज्ञानवतो महात्मनोब्रह्माहमित्येव मतिः सदात्मनि ॥ १६३ ॥ जिस पुरुषको इस जडदेहमें अहं बुद्धि होती है वह जड मनुष्य है, देहमें और जीवमें जिनकी आत्मबुद्धि है वह विद्वान हैं हम ब्रह्म हैं ऐसी बुद्धि सदा अपनेमें जिसकी होती है वही विवेकयुक्त विज्ञानी महात्मा है ॥ १६३॥
अत्रात्मबुद्धिं त्यज मूढबुद्धे त्वङ्मांसमेदोऽस्थिपुरीपराशौ । सर्वात्मनि ब्रह्मणि निर्विकल्पे कुरुष्व शान्ति परमां भजस्व ॥ १६४ ॥ हे मूढजन ! त्वचा, मांस, मज्जा, अस्थि, पुरीषका समूह यह देह है इस देहमें जो तुम्हारी आत्मबुद्धि हुई है इसको छोडकर विकल्पसे रहित सबका आत्मा परब्रह्ममें परमशान्तिको करो और उन्हींका सेवन करो ॥ १६४ ॥
देहेन्द्रियादावसति भ्रमोदितां विद्वानहतां न जहाति यावत् । तावन्न तस्यास्ति विमुक्तिवार्ताप्यस्त्वेष वेदान्तलयान्तदर्शी ॥ १६५॥
अनित्य इस देहमें और इन्द्रियोंमें भ्रमसे उत्पन्न अहंबुद्धिको जबतक जो मनुष्य नहीं त्याग करता है तबतक वेदान्तशास्त्रका नीतिमार्गका पारदर्शी होनेपरभी उस मनुष्यसे मुक्तिकी वार्ता भी दूर रहती है ॥ १६५ ॥