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________________ (४२) विवेकचूडामणिः । पूर्व जनेरपि मृतेरपि नायमस्ति जातक्षणः क्षणगुणोऽनियतस्वभावः । नैको जडश्च घटवत्परिदृश्यमानः स्वात्मा कथं भवति भावविकार वेत्ता ॥ १५८ ॥ यह देह जन्म के पहिले भी न था न मरने बाद रहेगा उत्पत्तिसममें दीखता है क्षणिक इसमें गुण है इसकी स्थिरता भी निश्चित नहीं है अनन्तानन्त है और जड है घटके नाई दीखता है ऐसा यह उत्पन्न विकार जड देह आत्मा क्योंकर हो सकता है ॥ १५८ ॥ पाणिपादादिमान्देहो नात्मन्यंगेपि जीवति । तत्तच्छक्तेरनाशाच्च न नियम्यो नियामकः ॥ १५९ ॥ हाथ और पैर आदि अङ्गों के भंगहोनेपर भी यह देह जीतारहता है इसलिये हस्त पाद संयुक्त यह शरीर आत्मा नहींहै और अङ्गोंके ज होनेपरभी उनकी शक्ति बनी रहती है इससे नियम्य जो देह है सो नियामक आत्मा नहीं हो सकता ॥ १५९ ॥ देहतद्धर्मतत्कर्मतदवस्था दिसाक्षिणः । स्वत एव स्वतः सिद्धं तद्वैलक्षण्यमात्मनः ॥ १६० ॥ देह और देहका धर्म कर्म अवस्था आदिका साक्षी आत्माको देहसे विलक्षणता आपसे आप सिद्ध है || १६० ॥ शल्यराशिर्मासलिप्तो मलपूर्णोऽतिकश्मलः । कथं भवेदयं वेत्ता स्वयमेतद्विलक्षणः || १६१ ॥ अस्थिका समूह मांससे लिप्त मलसे परिपूर्ण अतिनिन्दित यह देह चैतन्य नहीं होसकता है क्योंकि चैतन्य इससे विलक्षण है ।। १६१ ॥ स्वङ्मांसमेदोऽस्थिपुरीषराशावहंमति मूढजनः करोति । विलक्षणं वेत्ति विचारशीलो निजस्वरूपं परमार्थभूतम् ॥ १६२ ॥
SR No.002468
Book TitleVivek Chudamani Bhasha Tika Samet
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Sharma
PublisherChandrashekhar Sharma
Publication Year
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, G000, & G999
File Size12 MB
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