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________________ (४०) विवेकचूडामणिः। श्रुतिप्रमाणैकमतेः स्वधर्मनिष्ठा तयैवात्मविशुद्विरस्य । विशुद्धबुद्धेः परमात्मवेदनं तेनैव संसारसमूलनाशः ॥ १५० ॥ जो पुरुष श्रुतियोंका प्रमाण स्थिर मानता है उस पुरुषकी स्वधर्ममें श्रद्धा भक्ति होतीहै श्रद्धा होनेसे बुद्धिशुद्धि होतीहै बुद्धिशुद्धिहोनेसे परमात्मज्ञान होता है परमात्मज्ञान होनेहीसे समूल संसारका नाश होता है ॥ १५० ॥ कोशैरनमयाद्यैः पञ्चभिरात्मा न सम्वृतो भाति ॥ निजशक्तिसमुत्पन्नैः शैवलपटलैरिवाम्बु वापीस्थम् ॥ १५१॥ जैसे जलहीकी शक्तिसे उत्पन्न होकर शैवाल बावलीके सब जलको आच्छादनकर लेताहै तैसे आत्माकी शक्तिसे उत्पन्न होकर अन्नमय आदि पंच कोश आत्माको आवरण करलेता है जिसमें ऐसे प्रत्यक्ष रूप ईश्वरका प्रकाश नष्ट होजाताहै ॥ १५१ ।। तच्छेवालापनये सम्यक्सलिलं प्रतीयते शुद्धम् । तृष्णासन्तापहरं सद्यः सौख्यप्रदं परं पुंसः ॥ १५२॥ उस शैवालको दूर करनेसे शीघ्रही पुरुषको परम सौख्य देनेवाला तृषा संतापके नाश करनेवाला परम पवित्र स्वच्छ जल दिखाता है ॥ १५२॥ पञ्चानामपि कोशानामपवादे विभात्ययं शुद्धः । नित्यानन्देकरसः प्रत्यग्रूपः परं स्वयंज्योतिः १५३ तैसे अन्नमय आदि पंच कोशके ज्ञानद्वारा अज्ञान दूर करनेसे नित्य आनन्दस्वरूप जन्म आदिसे रहित प्रत्यक्ष स्वयम् प्रकाशस्वरूप शुद्ध परब्रह्मका ज्ञान होताहै ॥ १५३ ॥
SR No.002468
Book TitleVivek Chudamani Bhasha Tika Samet
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandrashekhar Sharma
PublisherChandrashekhar Sharma
Publication Year
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, G000, & G999
File Size12 MB
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